कंम्यूनिज्म क्या है ? Communism की सफलता व असफ़लता | What is Communism

साथियों अक्सर आपने बहुत बार Communism, Capitalism, Socialism, व Liberalism शब्दों को सुना होगा लेकिन क्या आप जानते हो इन विचारधाराओं का इन Ideology का सही में मतलब क्या होता है। क्या असर होता है इनका हमारी दुनिया पर ? क्या इसके फायदे और नुकसान है ? आज की इसी पोस्ट में जानने का प्रयास करेंगे।
आज की इसी पोस्ट में हम जानेंगे कुछ ऐसे कॉन्सेप्ट, टाॅपिक और चीजे सरल भाषा में समझगे जिनकी बात तो बहुत की जाती है मगर बहुत ही कम लोग इन शब्दों का अर्थ गहराई से जानते है।

कंम्यूनिज्म क्या है ?

अगर इसका साधारण भाषा में अर्थ जानने का प्रयास करे तो इसका मतलब है “एक ऐसा समाज जहाँ पर हर इंसान अपनी क्षमता के अनुसार काम करें कहने का तात्पर्य है जिसके पास जितनी क्षमता है वो उतना काम करे और समाज में अपने अनुसार योगदान करें और एक ऐसा समाज जहाँ पर व्यक्ति को अपनी जरूरत के हिसाब से चीजे मिले”
अब आपके मन में यह सवाल तो उठ ही रहा होगा कि यह कैसा अजीब तरीके का समाज है जहाँ पर एक शारीरिक रूप से ताकतवर व्यक्ति को अपनी मेहनत के बदले में सिर्फ उपयोगी चीजे मिल रही है। दुसरी ओर कमजोर व्यक्ति को भी वहीं चीजे मिल रही है फिर दोनों में अंतर क्या रहे जाएगा।
साथियों कंम्यूनिज्म के ऐसा समाज है जो जहाँ पर पैसा नाम की कोई चीज नहीं है बस काम के बदले सिर्फ जरूरत के अनुसार चीजे दी जाती हैं कंम्यूनिज्म समाज में कोई भी देश की सीमा रेखा नहीं होती है सब देश एक से होते है। यह एक क्लास लैस समाज है जहां पर ऊंच-नीच जैसे शब्दों की कहीं कोई जगह नहीं है मतलब कोई अमीर गरीब के बीच कोई भी किसी प्रकार का फर्क नहीं है।
ऐसे समाज में जमीन, खेत, कारखाने, यह सब चलाऐ जाते है मजदूरों के द्वारा यानि मजदूर ही मालिक है वाला सूत्र काम करता है।
जब भी हम कंम्यूनिज्म शब्द सुनते है तो हमारे मन में पहला नाम कार्ल मार्क्स का आता है जिन्होंने इस विचारधारा का प्रतिपादन किया था मगर यह कंम्यूनिज्म समाज तो आज से हजारों साल पहले बनकर उभर गया था जब लोग जंगलों में रहते थे और अपने खाना-पूर्ति के अलावा आगे कुछ नहीं सोचते थे और अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करते थे।

कौन है कार्ल मार्क्स:

कार्ल मार्क्स एक जर्मन दार्शनिक थे जिनको कंम्यूनिज्म का पिता कहा जाता है जिन्होनें 1848 में कंम्यूनिज्म मैनिफस्टों नाम की एक किताब लिखी। मार्क्स का जन्म उस समय हुआ था जब समाज में कारखाने खुलने प्रारंभ हुए और मालिक और मजदूरों की उत्पति होना प्रारंभ हुआ जहां पर शक्तिशाली व्यक्ति कमजोर पर हावी होने लगा था। बस यहीं से गरीब और अमीर दो वर्ग बनना शुरू हो गया। इन्हीं वर्गो में अंतर की खाई को कम करने के लिए कार्ल मार्क्स ने एक ऐसे समाज की कल्पना की जिसमें अमीर-गरीब में कोई अंतर नहीं हो। कहने का तात्पर्य है एक तरह का इन्होंने यूटोपिया की कल्पना की। यूटोपिया एक संतुलित समाज होता है जो हकीकत मे नहीं होती और इस यूटोपिया को इन्होंने नाम दिया कंम्यूनिज्म ।
अपने कंम्यूनिज्म मैनिफस्टो में मार्क्स ने बताया कि किस तरह से इस सोसायटी को हकीकत में अस्तित्व में लाया जा सकता है उन्होंने वे सभी तरीके बताऐ जिनकी मदद से कंम्यूनिज्म को अमल में लाया जा सकता है।

मार्क्स के कंम्यूनिज्म में कमियां:

अगर देखा जाए तो मार्क्स के कंम्यूनिज्म में बहुत सी कमियां है वाकई में इसे बहुत बड़े समाज लागू करना मुश्किल ही नही नामुनकिन है क्योंकि मार्क्स एक दार्शनिक थे उन्होंने तो सिर्फ कल्पना की थी।

कंम्यूनिज्म का प्रयोग कैसे किया जा सकता हैः


कंम्यूनिज्म बोलने में तो बहुत अच्छा लगता है मगर वास्तविक रूप से इसे लागू करना बेहद मुश्किल है मगर कंम्यूनिज्म को सबसे पहले अमली जामा तब पहनाया गया जब 1917 में रूस में क्रांति हुई। हुआ कुछ यूं रूस में कंम्यूनिज्म मजदूरों ने साथ में मिलकर अपने शासक जार के खिलाफ हल्ला बोल कर दिया उसे सत्ता से बेदखल कर दिया और इनके लीडर लेनिन ने पहली बार कंम्यूनिस्ट विचारधारा का प्रयोग किया।
लेनिन ने अपने जमाने में काफी क्रांतिकारी कदम उठाये मजदूरों की आवाज उठाई, मजदूरों को काम करने का समय 8 घंटे प्रतिदिन और 5 दिन सप्ताह कर दिया। महिला शिक्षा को बढ़ावा दिया गया। खेती करने के लिए जमीनों को अमीर से छिनकर गरीबों में बांट दी गई। जो फैक्ट्री थी उन्हें राष्ट्रीयकृत कर दिया गया।
लेनिन ने यह सब कुछ थोड़ा बहुतमार्क्स के विचारों से हटकर किया क्योंकि मार्क्स ने सबकुछ जनता के हाथ में सौंपने का सूझाव दिया तो लेनिन ने सबकुछ जनता को न सौंपकर सरकार के हाथों में दे दिया।
बाद में आगे जाकर रूस के लोगों के द्वारा लेनिन के प्रति भी विरोध के भाव उपजने प्रारंभ हो गए थे मगर लेनिन को सरकार के खिलाफ ऐसी आलोचनाऐं सुनना बिल्कुल भी पसंद नहीं था उनका मानना था कि वो जो कर रहे है वह सबकुछ सहीं है। इसी आलोचनाओं को दबाने के लिए देश भर की बाकी सभी राजनीतिक पार्टियों को नष्ट करने का ऐलान कर दिया और एक पार्टी वाला देश बनाने की घोषणा कर दी। मतलब एक ऐसा देश जहां पर सतारूढ़ पार्टी की आलोचना करने की भी इजाजत नहीं थी। इसी मार्क्ससिज्म-लेनिननिज्म की मिलीजूली विचारधारा को ही सोवियत कंम्यूनिज्म कहा जाता है।
1924 में लेनिन की मृत्यु के बाद उनकी जगह आये जोसेफ स्टालिन जिन्होने विचारधारामार्क्स व लेनिन की विचारधारा से कहीं दूर ले जाती थी जिस प्रकार लेनिन की विचारधारा कहीं ना कहीं मार्क्स से मिलती जुलती थी वहीं स्टालिन की विचारधारा मार्क्स की विचारधारा से और भी दूर चली गई। फिर से मजदूरों का शोषण होना प्रारंभ हो गया लेनिन ने काम करने की जो सीमा कम की उसे स्टालिन ने फिर से बढा दिया। इसके बाद मजदूरों की हालत और अधिक खराब हो गई भूखमरी की वजह से देश में लाखों लोग मारे गए। इसके बाद आये माओं जो कंम्यूनिज्म विचारधारा के नाम पर शोषण करने में स्टालिन से भी दो कदम आगे निकलें।
सेवियत कंम्यूनिज्म को देखकर दुनिया भर के अनेक देशों ने इस विचारधारा को अपने-अपने देश लागू करना प्रारंभ किया इन सभी देशों में अपनी-अपनी विचारधारा को लागू किया गया। जिन भी देशों ने कंम्यूनिज्म का कुछ भी अंश लागू किया उन सब में तानाशाहीं सरकारे थी।
एक तरफ थे दुनिया में स्टालिन व माओ जैसे तानाशाह जो लोगों को इस शक के आधार पर मार डालते थे कि कहीं वो कंम्यूनिज्म के खिलाफ तो नहीं है दुसरी तरफ थे जर्मनी में हिटलर और इटली में मुसोलिनी जो लोगों को इस शक के आधार पर मार डालते थे की कहीं लोग कंम्यूनिज्म के समर्थक तो नहीं बन रहे है।
हिटलर और मुसोलिनी के बारे में अक्सर कहा जाता है कि इन्होंने एक ऐसा तरीका अपनाया सत्ता में आने के लिए की इन्होंने लोगों का कंम्यूनिज्म के नाम पर लोगों का डराया और कहा की अगर देश में कंम्यूनिज्म आ गया तो लोग आप पर हावी हो जाएगें आपको मार डालेंगे और इसी तरह यह सत्ता में आये और तानाशाह बने।

कंम्यूनिज्म से दुनिया ने क्या लिया:


साथियों ऐसा भी नहीं है कि कंम्यूनिज्म एक दम से खराब है इसमें ऐसे भी कुछ अच्छे गुण थे जिनको बाकी दुनिया ग्रहण किया और अपने देश में लागू किया।
कंम्यूनिज्म ने दुनिया को बिना वर्ग का समाज देने की बात कहीं है मतलब जहां पर जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है ऊंची जाति व नीची जाति में कोई भेदभाव नहीं है। अमीर गरीब के बीच में किसी प्रकार की कोई बंटवारे की खाई नहीं हैं।
अभिव्यक्ति की आजादी मार्क्स के कंम्यूनिज्म की ही कहीं ना कहीं देन हैं जिसकी वजह से आज दुनिया भर में व्यक्ति अपनी आवाज सरकारों के खिलाफ उठा सकता है।
कंम्यूनिज्म की तीसरी देन है मजदूरों के अधिकार को अपने अधिकारों की रक्षा करने का कंम्यूनिज्म में ही मजदूरों के प्रति सहानुभूति रखी गई है।

कंम्यूनिज्म की असफलता:


कंम्यूनिज्म की सबसे बड़ी कमी है वो है व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार काम करेगा मगर उसको अपनी जरूरत के हिसाब से चीजे मिलेगी। कहने का तात्पर्य कोई कितना ही काम क्यों न कर ले मगर उसकों मिलेगा सिर्फ उतना ही जो कम काम कर रहे है तो व्यक्ति कड़ी मेहनत करता है मगर उसकों पता है कि वो कितना ही काम कर ले मगर मिलेगा तो उसको उतना ही जितना बाकियों को मिलता है तो क्यों अपनी मेहनत में को और अधिक बढ़ायेगा। इससे देश में कामचोरी और अधिक बढ़ जाती हैं।
कंम्यूनिज्म कहीं ना कहीं तानाशाही को बढ़ावा देती है।
साथियों कंम्यूनिज्म के बारे में आपके क्या विचार है हमें कमेंट करके जरूर बताऐ।

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