Instagram का Reels Addiction क्या है ?

यूनिवर्सिटी ऑफ़ नाॅर्थ कैरोलीन के न्यूरोसाइंटिस्ट ने 12 से 15 साल की उम्र के युवाओं के ब्रेन स्कैन में पाया कि 12 साल की उम्र के ऐसे बच्चे जिन्हें सोशल मीडिया फीड को बार-बार चेक करने की आदत होती है उनके मस्तिष्क में एक विशेष प्रकार का बदलाव होने लगता है। आगे चलकर यह बच्चे सोशल मीडिया फीड पर लाइक, कमेंट आदि के प्रति संवदेनशील हो जाते है। देश में लगभग 23 करोड़ यूजर्स अकेले इंस्टग्राम रील बना रहे हैं जो दुनिया में सर्वाधिक है। इसके अलावा अन्य प्लेटफॉर्म यूजर्स जैसे यूट्यूब, फेसबुक आदि की संख्या भी करोड़ों में है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसार सोशल मीडया को इस तरह से निर्मित किया गया है कि वह मस्तिष्क में फील-गुड केमिकल्स जैसे डोपामाइन को सक्रिय करता है। वे न्यूरोकेमिकल्स व्यक्ति में लत पैदा करत हैं।

Reels Addiction :

लगातार रील्स देखने वाले बच्चों और किशोरों में ध्यान केंद्रित करने में मदद करने वाला मस्तिष्क का हिस्स बुरी तरह प्रभावित होता है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेम्स विलियम्स के मानना है कि दरअसल रील्स देखने के दौरान मस्तिष्क जल्दी-जल्दी चीजों को देखकर आनंद महसूस करता है। इसके उलट पढ़ाई करने या ऐसे ही अन्य कामों में निरंतरता और समय की जरूरत होती है। ऐसे में मस्तिष्क भटकने लगता है।
मास साइकोजेनिक इलनेस (MPI) साइकोलाॅजिकल डिसऑर्डर का एक समूह है। इस बीमारी में नर्वस सिस्टम हाईपर एक्टिव हो जाता है या फिर उसका शरीर के विभिन्न अंगों पर नियंत्रण नहीं रहता है। उदाहरण के तौर पर भीड़ के बीच बात करते हुए, चलते हुए या कोई अन्य कार्य करते हुए किसी किशोर को अजीब तरीके से हाथों या पैरों को हिलाते हुए देखा होगा जैसे वह ओवरएक्टिंग कर रहा हो, लेकिण यह ओवर एक्टिंग नहीं बल्कि एमपीआई की समस्या है।
18 से 24 साल के काॅलेज जाने वाले युवाओं पर किए गए शोध में पाया गया कि जो सोशल मीडिया का अधिक उपयोग करते थे उनमें सी-रिएक्टिव प्रोटीन(सीआरपी) की मात्रा ज्यादा पाई गई। यह प्रोटीन डायबिटीज, कुछ प्रकार के कैंसर और हदय संबंधी रोगों का प्रारंभिक इंडिकेटर माना जाता है। इसके अलावा रील्स एडिक्ट किशोरों में ईटिंग डिसऑर्डर का खतरा अधिक होता है। फिजिकल एक्टिविटी घटती है, जिससे मोटापे का खतरा भी बढ़ जाता है।

Reels Addiction से बचाव:

शेयरिंग बंद करें:
ज्ब आप किसी एप् पर फोटो और वीडियो शेयर नहीं करते हैं तो उसे स्क्राॅल करने का एक कारण कम हो जाता है। हालांकि इंस्टग्राम जैसे एप् केवल फोटो और वीडियो शेयर करने के लिए नहीं बल्कि इसके रील्स देखना भी Addiction है, लेकिन वीडियो और वीडियो शेयर नहीं करने से उसे देखने की इच्छा कम होती है।
तय लिमिट:
किसी भी ऐप को देखने के लिए उसे दो हिस्सों में बांट कर देखे। पहला – एक्टिव स्क्रीन टाइम, जब आप स्क्रीन के माध्यम से कुछ सीखते है या कुछ नया करते है जाहं पर आपकी क्रिएटीविटी का उपयोग होता है। यह स्क्रीन टाइम आपके लिए बेहतर होता है।
दूसरा है – पैसिव स्क्रीन टाइम
केवल स्क्रीन को स्क्राॅल कर यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे एप वीडियो और रील्स देखते है। यह केवल समय की बर्बादी है। मस्तिष्क इससे कुछ नया नहीं सीखता है।
नई हाॅबी लिस्ट:
खाली समय में सोशल मीडिया चलाने के अलावा और क्या-क्या कर सकते हैं इसकी एक लिस्ट बनाएं, इसे ऐसी जगह पर टांगे जहां अधिकांश समय यह आपकी नजरों के सामने रहे। अब जब भी खाली समय मिले उनमें से एक हाॅबी पर काम करना शुरू कर देवे।

निष्कर्ष:

साथियों 15 सेकेंड की रील्स या षाॅर्ट वीडियों आपके जीवन का अमूल्य समय की बर्बादी के अलावा और कुछ नही दे सकता है, आप इनको देखेंगे तो रील्स क्रिएटर तो पैसा कमाएगा मगर आपके हाथ कुछ भी नही लगने वाला सिवाए समय की बर्बादी।
रील्स व अन्य सोशल मीडिया को अब आप सीमित समय दीजिए और अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हो जाइए। धन्यवाद

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