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OIC क्या है कैसे अस्तित्व में आया ?
पिछले दिनों एक राजनीतिक प्रवक्ता की कथित आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर इस्लामिक सहयोग संगठन(OIC) ने भारत में मुस्लिमों के हितों की अनदेखी करने का आरोप लगाया था। हालांकि भारतीय विदेश मंत्रालय ने तुरंत ओआईसी की इस टिप्पणी को गैर जरूरी और ओझी मानसिकता का परिचायक बताकर खारिज कर दिया था। भले ही एक संगठन के तौर पर OIC भारत पर इस तरह के आरोप लगा रहा है, लेकिन अधिकांश मुस्लिम देशो की सरकारें भी इसकों एक हद तक ही अहमियत देती है। इसका कोई नियंत्रण नहीं है। इसकी स्थापना का मूल उद्देष्य देशों में आंतरिक राजनीतिक विरोधाभासों को दूर करना था। क्या यह अपने इस उद्देष्य में सफल रहा है? पिछले कई वर्षों से अनेक मुस्लिम देशो के बीच चलने वाले संघर्ष बताते है कि यह अपने उस उद्देष्य में कमोबेश विफल ही रहा है। अगर वह कामयाब रहता तो मध्य-पूर्व के देशों की समस्याओं का समाधान हो गया होता और न केवल मुस्लिम जगत, बल्कि पूरी दुनिया आज कहीं अधिक शांत, सम्पन्न और खूबसूरत होती। OIC की इसी विफलता के चलते आज अधिकांश बड़े मुस्लिम मुल्क, खासकर सऊदी अरब उसकी वैचारिकी से दूरी बनाने लगे है।
OIC की फूल फाॅर्म:
Organisation Of Islamic Co-operation (यह संगठन संयुक्त राष्ट्र के बाद दूसरा सबसे बड़ा संगठन) है।
स्थापना: इस संगठन की स्थापना सितंबर 1969 में हुई, इस संगठन में विश्व के 4 महाद्वीप के करीब 57 देश इस संगठन का हिस्सा है।
मुख्यालय: इस संगठन का मुख्यालय जेद्दाद(सऊदी अरब) में है।
फडिंग: इस संगठन को करीब 30 देष फडिंग करते है।
देश: इस संगठन में करीब 27 देश अफ्रीका के व 27 देश एशिया के शामिल है।
आबादी: इस संगठन के सदस्यों देशों की कुल आबादी करीब 1.85 अरब से अधिक है।
क्षेत्रफल: इस संगठन के देशों का कुल क्षेत्रफल 3.16 करोड़ वर्ग किमी है जो की भारत के कुल क्षेत्रफल का 10 गुना अधिक बड़ा है।

OIC कैसे अस्तित्व में आया ?
यह उस अरब राष्ट्रवाद के खंडहरों पर खड़ा है, जो एक उदार और पंथनिरपेक्ष आंदोलन था। अरब राष्ट्रवाद का उद्देष्य 10 वीं शताब्दी में हुआ था, जो OIC की स्थापना से ठीक पहले तक अस्तित्व में बना रहा। यह मूलतः यमन, ओमान, कुवैत, इराक, जाॅर्डन, सीरिया, मिस्त्र, और तुर्की में सक्रिय रहा, जिसका मुख्य मकसद अरबों की स्वतंत्रता और अरब एकता था। 1913 मे पेरिस में एकत्रित होकर इसके नेताओं ने कहा था कि ‘अरब राष्ट्र एक जीवित सामाजिक इकाई’ है। फिर इराक बगदाद पैक्ट के जरिए अमेरिकी सैन्य गठबंधन का हिस्सा बन गया। मिस्त्र में नासेर मूल उद्देष्य से भटक गए। परिणाम यह हुआ कि इसके स्थान पर ‘इस्लामिक सहयोग संगठन’ अस्तित्व में आ गया।
OIC की असफलता:
1 इराक-ईरान युद्ध – इसकी गिनती दुनिया के लंबे समय तक चलने वाले विनाशकारी युद्धों में होती है। 1980 से 1988 तक यह संघर्ष चलता रहा, लेकिन OIC ने इसे रोकने की अपने स्तर पर खास कोशिश नहीं की। इस संघर्ष में दोनों ही देशों के कम से कम 15 लाख लोगों की मौत हुई।
2 कुवैत-इराक खाड़ी युद्ध: 2 अगस्त 1990 को सदाम हुसैन के नेतृत्व वाली इराकी सेना ने पड़ोसी कुवैत पर हमला कर उस पर पूरी तरह कब्जा कर लिया। कुवैत को मुक्त करने के लिए अमेरिका की अगुवाई में पष्चिमी देश आगे आए। इसके बाद इराक में फैले गृहयुद्ध में 10 लाख मुस्लिम मारे गए। OIC बस तमाशा ही देखता रहा।
3 कुर्दीश-तुर्की संघर्ष: तुर्की सरकार और विभिन्न कुर्दिश समूहों के बीच 1978 से ही संघर्ष चला आ रहा है। वहां 30 हजार से एक लाख लोग इस संघर्ष में मारे गए है लेकिन OIC मूकदर्शक बना रहा।
4 सीरियाई गृहयुद्ध: 2011 से अब तक जारी इस गृहयुद्ध मे एक ओर बशर अल असद की अगुवाई वाला सरकारी खेमा है तो उसके खिलाफ छोटे-बड़े कई मुस्लिम समूह है। सीरियाई मुस्लिम नागरिकों पर जैविक हथियारों के इस्तेमाल पर भी OIC ने सीरिया को महज सदस्यता से सस्पेंड कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली।
5 अफगानिस्तान में विभाजन: यह तीन दशकों तक विभिन्न मुस्लिम कबाइली समूहों के बीच संघर्ष में उलझा रहा। तालिबानी शासन के दौरान अफगानी नागरिकों के मानवाधिकार खुले आम रौंदे गए। OIC ने अफगानिस्तान में मानवाधिकारों की कभी बात नहीं की। आज 22 लाख अफगानी विस्थापन शिविरों में रहने को मजबूर है।