
1993 में बंगाल के नदिया जिले का गांव फूलिया सूर्खियों में एक दिव्यांग लड़की के साथ दुष्कर्म की खबरें अखबारों में थी यह दुष्कर्म किया था सीपीएम के एक कार्यकत्र्ता ने उस पीड़ित लड़की को साथ लेकर वो लड़की सीधे राॅयटर्स बिल्डिंग की तरफ बढ़ रही थी उस समय ज्योति बसु बंगाल के मुख्यमंत्री थे। पुलिस ने उस महिला को रोका और घसीटते हुए बाल पकड़कर बाहर फेंक दिया।
ठीक 18 साल बाद वो महिला दुबारा राॅयटर्स बिल्डिंग पहुंची परंतु इस बार वो महिला पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री थी रेप पीड़िता के लिए मांग कर रही उस महिला का नाम था ममता बनर्जी। आज के इस पोस्ट में हम आपको ममता से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें बताएगें जो शायद ही आप जानते होंगे।
दरअसल गरीब परिवार में जन्मी थी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पिता स्वतंत्रता सेनानी थे लेकिन छोटी ही उम्र में ममता ने अपने पिता को खो दिया कुछ लोग ऐसी हालत में टूट जाते है लेकिन ममता बनर्जी उन लोगों में नहीं थी जो टूट जाये। ममता बनर्जी अपने पिता की मृत्यु के बाद टूटने वाले लोगों में नही थी बल्कि अपने आपकों को मजबूती के साथ उभारने वाले लोगों में शामिल थी। स्कूल के दिनों से ही ममता बनर्जी राजनीति से जुड़ गई राजनीति से विचारों की आग तो जली लेकिन पेट की आग को बुझाने के लिए उन्हें गरीबी से संघर्ष करना पड़ा।
हालात यह थे उन्होंने दूध तक बेचा पढ़ने में बेहद ही तेज थी ममता बनर्जी दक्षिण कोलकाता के जोग माया देवी काॅलेज में उन्होंने इतिहास से ऑनर्स की डिग्री हासिल की। बाद में कलकत्ता विश्वविद्यालय से इस्लामिक इतिहास में मास्टर की डिग्री ली। इसके बाद भी ममता का पढ़ाई से मन नहीं भरा तो उसने आगे जाकर बीएड और लाॅ की भी पढ़ाई की। पढ़ाई के साथ-साथ सियासत के गुण भी सीख रही थी ममता बनर्जी स्कूल की राजनीति से महाविद्यालय की सियासत में ममता अपना लोहा मनवा रही थी ममता बनर्जी के राजनीतिक जीवन की शुरूआत 70 के दशक में हुई थी जब इन्होंने कांग्रेस की स्टूडेंट विंग से जुड़कर कोलकाता में नक्सलियों के साथ आंदोलन में अहम भूमिका निभाई।
ममता के जज्बे को देखकर सुब्रत मुखर्जी ने ममता को पार्टी में शामिल कर लिया साल 1976 से साल 1980 तक ममता बनर्जी महिला कांग्रेस की महासचिव रहीं। ममता के सियासी कैरियर का सूरज उदय हुआ साल 1984 में जब इन्होंने अपने पहले लोकसभा चुनाव में जादवपुर से सीपीएम नेता सोमनाथ चटर्जी को हराया इस जीत के बाद ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में भारत की सबसे कम उम्र वाली पहली सांसद बनी और पूरे देश में महशुर हो गई साल 1989 के चुनाव के दौरान देश में कांग्रेस विरोधी लहर थी ऐसे में ममता को भी अपनी सीट गंवानी पड़ी फिर साल 1991 में ममता बनर्जी कांग्रेस पार्टी से अलग हो गई और अपनी नई पार्टी भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की स्थापना की। जिसकी स्थापना के बाद से ही यह पार्टी पश्चिम बंगाल की पहली विपक्षी पार्टी बन गई।
साल 1999 में में ममता बनर्जी एनडीए सरकार में शामिल हुई और ममता को रेलमंत्री बनाया गया लेकिन साल 2001 में ममता बनर्जी ने एनडीए मंत्रीमंडल को छोड़ कर कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की। साल 2001 से साल 2004 आते-आते दीदी की मिजाज बदला और एक बार फिर एनडीए में शामिल हुई और कोयला और खान मंत्री का पदभार संभाला।
साल 2005 और साल 2006 ममता बनर्जी के लिए असफलता भरा रहा इनकी पार्टी ने जहां कोलकाता नगर निगम की सत्ता खो दी वहीं विधानसभा चुनावों में भी हार का सामना करना पड़ा साल 2009 में संसदीय चुनावों से पहले ममता बनर्जी ने राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए के साथ गठबंधन किया।
इसके बाद साल 2011 में ममता बनर्जी ने आम चुनावों में पूर्ण बहुमत हासिल किया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनीं और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के 34 साल पुराने गढ़ को ढहा दिया। सफेद साड़ी और पैरों में चप्पल पहने ममता जब मंच पर होती है तो उनका आक्रामक रवैया विरोधियों को बेजुबान कर देता है।
सख्त मिजाज और नाक पर गुस्सा रखने वाली ममता बनर्जी दिल की उतनी ही नरम है जो लोग दीदी को करीब से जानते है वो लोग जानते है कि दीदी जो फैसला एक बार ले लेती है उससे कभी भी बाद में पीछे नहीं हटती है। अपने सियासी सफर को ममता बनर्जी ने सड़क से संवारा है और दिल्ली के दरबार तक सजाया है।
सत्ता में काबिज माक्र्सवादियों के खिलाफ सड़क से छेड़ी गई लड़ाई और पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की औद्यौगिक नीतियों के खिलाफ उनके संघर्ष की कहानियां बंगाल की सियासी गलियों में आज भी जिंदा है इन्हीं लड़ाईयों ने ममता को बंगाल में खड़ा किया। इन्हीं संघर्षो का नतीजा रहा तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमों ममता बनर्जी बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी।
देश की सियासत में ममता बनर्जी शायद इकलौती ऐसी मुख्यमंत्री है जो बगैर लाल बत्ती और बिना बूलेट प्रूफ गाड़ी के चलती है ना ही वो अपने साथ किसी तरह का काफिला लेकर चलती है लेकिन बंगाल की धरती पर दीदी के लिए आत्मसुरक्षा का यह भाव इसबार चुनौती बनता जा रहा है। इस बार बंगाल को जीतने से पहले बीजेपी ने दीदी को खुली चुनौती दे दी है बीते 2 महिनों से बंगाल जंग का मैदान बना हुआ है।
ममता के गढ़ में सेंध लगाने के लिए बीजेपी ने सारे घोड़े खोल दिए है बाहरी और अंदरखाने की सियासत ने ममता बनर्जी को इस बार बैचेन कर दिया है पार्टी में लगातार तेज होती बगावत के बीच ममता के लिए अपने किले को बचाए रखना मुश्किल सा दिखाई दे रहा है अगर मुश्किल नहीं भी कहे तो बीजेपी इस बार ममता को बड़ा नुकसान पहुंचाने के मूड में है क्योंकि एक ओर प्रधानमंत्री मोदी समेत पूरा केंद्रीय मंत्रिमण्डल ममता के गढ़ में सेंध लगाने उतर गया तो दूसरी ओर ममता के एक के बाद एक नेता उनका साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम रहे है।
क्या इस बार ममता अपने गढ़ पश्चिम बंगाल को बचाने में कामयाब रहेगी इस प्रश्न का जवाब कमेंट करके जरूर बताऐं।