हम समय पर नहीं पहुंचेंगे
Blog Credit : शैलेश लोढ़ा जी

सुबह ही सुबह हमारा फोन बजा और देख की फोन पड़ोसी बाबूलाल जी का था। हमें अचरज हुआ यह तो स्वयं उनके आगमन का समय है। इस वक्त दूरभाष पर! सब ठीक तो है ना? हमने फोन उठाया और कुछ बोलें, उसके पहले ही बाबूलाल जी बोल पड़े, ‘शेलेष भाई, हम जानते हैं कि आप थोड़े आष्चर्य में होंगे। चिंता न करें, सब ठीक हैं। हमने सिर्फ यह बताने के लिए फोन किया है कि आज जरा घर का सामान खरीदना था। छुट्टी है तो श्रीमतीजी ने कहा कि अभी खरीद लाओ, जरूरी है। हम भी कई दिनों से टाल रहे थे। अतः आज बाजार आए हैं। आधे घंटे की देरी होगी। फिर आकर चाय पीते हैं और बतियाते हैं।’ हमें बड़ा अच्छा लगा कि बाबूलाल जी कितने जिम्मेदार व्यक्ति हैं कि हमें उनके न आने पर असमंजस और आशंका में पड़ने के कारण नही दिए और सूचित कर दिया। वरना देर से आने के बाद भी (यद्यपि कोई समयबद्धता नहीं है, लेकिन एक तय सा समय जरूर है) बड़े आराम से कह सकते थे कि भाई साहब, आज थोड़ा काम था इसलिए आ नहीं पाया। असल में हम जिंदगी में आसपाास ऐसे बहुत से लोग पाते हैं जो कहीं भी समय पर जाना शान के खिलाफ समझते हैं। किसी जायज वजह से हमें देरी हो जाए तो यह बात समझ में आती है पर कई तथाकथित बड़े लोग हर जगह देरी से पहुंचने में अधिकार समझते हैं। उन्हें लगता है कि समय पर पहुंचना तो ‘साधारण’ और ‘सामान्य’ का काम है। मुझे आज तक एक भी राजनैतिक रैली याद नहीं जिसमें बड़े-बड़े नेता समय पर पहुंचे हों। देरी से पहुंचने पर उनके स्वर में क्षमा की जगह एक विशिष्ट किस्म के दंभ का भाव ही होता है कि ‘आप इस कड़ी धूप में मेरा तीन घंटे से इंतजार कर रहे हैं।’ उनके मन में प्रसन्नता का भाव होता है कि जितना बड़ा नेता, वह जनता को उतना ही इंतजार करवाता है और कितनी देर जनता रूकी रही, यह लोकप्रियता का पैमाना है। ग्लैमर वर्ल्ड के लोग तो इसी में ‘स्टारडम’ मानते हैं कि मैं 8 बजे के अवार्ड शो में 11 बजे पहुंचा और मेरे लिए सबसे आगे कुर्सी लगाई गई। लेकिन यदि जीवन में ऐसा अनुशासन आ जाए तो आप सफलता के शिखर पर पहुंच सकते है जिसका उदाहरण भी अमिताभ बच्चन है। यह मेरा कई बार का अनुभव है कि यदि उनके आगमन का समय 6.15 बजे है तो आप उनके उस स्थान पर प्रवेशकरने के क्षण से अपनी घड़ी मिला सकते हैं। लेकिन न जाने क्यों हमारे कई मित्र देरी से आने का उपक्रम तो सदैव करते हैं और उनके मन में कहीं ये बोध भी नहीं होता कि यह ठीक नहीं है। अधिकारी अधीनस्थ के यहां किसी समारोह में जाएं तो मजाल है कि समय पर पहुंच जाएं। पता नहीं क्यों समाज में समय से आने वाले को ‘खाली’ और ‘निठल्ला’ माना जाता है। सत्य यह है कि समय से आने वाला न केवल स्वयं बल्कि सबके हित में सोचता है और देरी से अपनी महत्ता जताने वाले लोग भूल जाते हैं कि उनका यह महत्व कितना क्षणिक और भंगुर हैं।
Blog Credit : शैलेश लोढ़ा जी