NESCAFÉ Success Story | नैस्कैफे सफ़लता की कहानी

नमस्कार साथियों, आज के इस पोस्ट में हम बीवरेज कंपनी नेस्कैफे (NESCAFÉ) की सफलता का कहानी जानेंगे।

कंपनी स्थापना 1938 (स्विट्जरलैंड)
रेवेन्यू2 लाख करोड़ से अधिक

नेस्कैफे (NESCAFÉ) का इतिहास :

‘द काॅफी विद लाइफ इन इट। मेड इन जस्ट 5 सेकंड्स…’ यानी काॅफी जिसमें जीवन है और झटपट 5 सेकंड में तैयार हो जाए। 1963 में भारत आने से पहले नेस्कैफे ने इस टैग लाइन के साथ देशभर में प्रचार अभियान शुरू किया। भारत में काॅफी पीने वाले लोग जानते थे कि एक कप काॅफी पीने वाले लोग जानते थे कि एक कप काॅफी बनाने में मिनटों लगते हैं और फटाफट वाला आइडिया उन्हें नया लगा। इसके बाद नेस्कैफे भारत के साथ दुनियाभर में इंस्टेंट काॅफी का पर्याय बन गई। नेस्कैफे की शुरूआत स्विट्रलैंड में हुई थीं इंस्टेंट फूड बनाने के लिए विख्यात नेस्ले की कमाई में नेस्कैफे का योगदान सबसे ज्यादा है। कंपनी अपने नए प्रोजेक्ट्स को लेकर चर्चा में हैं।

क्या आप भी NESCAFÉ को पसंद करते है ?

शुरूआत:

1929 में अमेरिका में महामंदी शुरू हो गई। अमेरिकी शेयर बाजार धराशायी हो गया। उस समय ब्राजील काॅफी का सबसे बड़ा (80 प्रतिशत) निर्माता था। आज भी ब्राजील में सबसे ज्यादा काॅफी पैदा होती है। मंदी के कारण में सबसे ज्यादा काॅफी पैदा होती है। मंदी के कारण वेयरहाउस में काॅफी पड़ी हुई थी। तब नेस्ले को यह काम सौंपा गया कि क्या काॅफी बीन्स से कुछ घुलनशील काॅफी क्यूब बनाकर ग्राहकों को बेचे जा सकते हैं? या उन्हें प्रिजर्व करके रखा जा सकता है? समाधान खोजने के लिए नेस्ले ने केमिस्ट डाॅक्टर माॅर्गेथलर को नियुक्त किया। माॅर्गेथलर तीन सालों तक इस प्रोजेक्ट पर भिड़े रहे। फिर उन्होंने दूध-शक्कर के साथ काॅफी मिलाते हुए एक पाउडर बनाया। लेकिन यह आसानी से घुल नहीं रहा था और उत्पादन के लिए भी चुनौती बन रहा था। एक साल बाद वह नए फाॅर्मूले के सथ आए। आखिरकार दो साल बाद 1 अप्रैल 1938 को काॅफी उत्पाद नेस्कैफे स्विट्रलैंड में लाॅन्च हुआ।

ग्रोथ:

जून 1938 में नेस्कैफे ब्रिटेन में लाॅन्च हुई फिर 1939 में अमेरिका में एंट्री हुई। इस बीच द्वितीय विष्वयुद्ध (1939-45) शुरू हो गया, लेकिन यह नेस्कैफे के लिए लकी साबित हुआ। अमेरिकी सैनिकों के बीच नेस्कैफे काफी लोकप्रिय हो गई और इसका उत्पादन तीन गुना हो गया। नेस्कैफे काॅफी पाउडर की शेल्फ लाइफ, ताजे काॅफी बीन्स से कहीं ज्यादा थी, इसलिए इसकी लोकप्रिय बढ़ती गई। मांग पूरी करने के लिए 1943 में अमेरिका में दो उत्पादन इकाइंया शुरू की गई। 1952 में फ्रांस फैक्ट्री में इसमें और इनोवेशन हुए, जिसके बाद इसमें अतिरिक्त कार्बोहाइड्रेट मिलाना बंद हो गए। 1960 तक आते-आते यूरोप और जापान में काॅफी पाउडर कांच के जार में बेची जाने लगा। इससे इसकी ताजगी लंबे समय तक बनी रही और दिखने में भी यह अच्छी लगती थी। 1965 में कंपनी ने गोल्ड ब्लैंड नाम से फ्रीज ड्रायल साॅल्यूबल काॅफी का उत्पादन शुरू किया।

बाजार:

2022 में दुनियाभर का काॅफी बाजार 10 लाख करोड़ रूपए का रहा। इसमें भी इंस्टेंट काॅफी का हिस्सा अच्छा-खासा है। नेस्कैफे इंस्टेंट काॅफी के क्षेत्र में मार्केट लीडर है, हालांकि स्टारबक्स दुनिया की सबसे बड़ी काॅफी चेन और काॅफीहाउस कंपनी है। फोब्र्स के अनुसार नेस्ले के कुल रेवेन्यू में एक चौथाई नेस्कैफे की सेल्स से आता है। कंपनी की सालाना रिपोर्ट के अनुसार 2021 में नेस्ले का रेवेन्यू 95.73 अरब डाॅलर रहा, इसमें 2 लाख करोड़ रूपए नेस्कैफे का हिस्सा रहा। नेस्कैफे कुल 14 तरह की काॅफी बेचती है, इसमें सनराइज, गोल्ड आदि हैं। क्यू ग्रेडर की रैंक के अनुसार नेस्कैफे की अजेरा इंटेंस दुनिया में सबसे लोकप्रिय काॅफी है। काॅफी के अलावा नेस्कैफे ब्रांड नाम से कंपनी कई और उत्पाद भी बेचती है।

रोचक तथ्य :

180 देशो में नेस्कैफे काॅफी बिकती है।
20 देशो से काॅफी खरीदती है नेस्कैफे कंपनी।
05 हजार तरह के ब्रांड हैं नेस्कैफे के नाम से।
12 किलो सालाना प्रति व्यक्ति काॅफी की खपत है फिनलैंड में। ये दुनिया में सर्वाधिक है।
05 हजार 500 कप नेस्कैफे काॅफी हर सेकंड पी जाती है दुनियाभर में।
01 कप नेस्कैफे की काॅफी होती है, दुनियाभर में हर 07 कप काॅफी पीने वालों में।
33 नंबर पर है नेस्कैफे फोब्र्स की वल्र्ड मोस्ट वैल्यूएबल ब्रांड की लिस्ट में।

रोचक बात:

29 मई 1953 को एडमंड हिलेरी और तेन्जिंग नौरगे ने माउंट एवरेस्ट की चोटी फतह की थी। यात्रियों ने नेस्कैफे काॅफी माउंट एवरेस्ट पर पहुंचाने की इच्छा जताई थी। इसके बाद कंपनी ने टिन के डिब्बों में नेस्कैफे को माउंट एवरेस्ट पर पहुंचाया। 1969 में अपोलो-11 स्पेस मिशन शुरू होने से पहले नेस्ले को स्पेस में ले जाने वाले कुछ फूड बनाने को कहा गया था। ऐसे फूड जो भुरभुरे न हों और पोषण से भरपूर हों। स्पेस मिशन पर जाने वाले सारे अंतरिक्ष यात्री काॅफी पीने के भी आदी थे। ऐसे में काॅफी भी स्पेस शिप में ले जाने की चुनौती थी। इसके बाद फ्रीज ड्राइंग प्रोसेस के जरिए विशेष नेस्कैफे काॅफी तैयार की गई और अपोलो-11 के अंतरिक्ष यात्रियों ने स्पेस में नेस्कैफे का लुत्फ उठाया।

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