राजस्थान की फिजाओं में इन दिनों एक कहावत तेजी से वायरल हो रही है कि क्या आपने “नाथी का बाड़ा” समझ रखा है जो मुंह उठाए यह चले आए हो लेकिन आपमें से बहुत से ऐसे भी लोग है जिनको अभी भी यह कहावत समझ में नहीं आ रही होगी की नाथी क्या है? और इन दिनों क्यों इतनी मीडिया में सुर्खियां बटोर रही है आज इन दोनों सवालों के जवाब आपको इस पोस्ट में मिलने वाले है।
नाथी का बाड़ा क्या है?
साथियों दरअसल जिस नाथी के बाड़े की बात हम कर रहे है वो नाथी पाली जिले के भांगेसर गांव की रहने वाली थीं आज से तकरीबन 150 साल पहले पालीवाल ब्राहमण कुल में पैदा हुई थीं नाथी बाई बाल विधवा थीं, लेकिन उनके आदर्श उच्च थे उनका सम्मान ना सिर्फ भांगेसर गांव बल्कि आसपास के गांव भी करते थे। उम्र के साथ-साथ नाथी बाई का नाम, धन-दौलत और दिल बेहद बड़ा होता गया था जिसके कारण नाथी के बाड़े में फरियाद लेकर आने वाला कोई भी फरियादी खाली हाथ नहीं लौटता था लोग शादी ब्याह और दूसरे कामों के लिए नाथी बाई से उधार पैसे और अनाज लेने आते थे और नाथी बाई खुद अपने भरे खजाने से जरूरत के पैसे निकालने को कह देती थीं फिर जब कोई पैसा या उधार लिया गया धन वापस देने को आता था उसे वहीं रखने को कह देती थी जहां से वो उठा कर ले जाता था।
अगर बात करे नाथी बाई के परिवार की तो नाथी बाई वैसे तो बाल विधवा थी जिसके कारण उन्होंने अपने बूढ़ापे के सहारे के रूप एक बच्चे को गोद लिया था कहा जाता है कि नाथी बाई ने दिए अपने हाथ के धन का न तो कोई हिसाब रखती न ही वापस लौटाने को कहती थी मगर उस समय के लोग खुद ब खुद उधार लिए धन को वापस लौटाने आते थे।
नाथी बाई अभी सुर्खियों में क्यों है?
साथियों अभी सोशल मीडिया सहित आम जीवन में यह कहावत छाई हुई है कि क्या नाथी का बाड़ा समझ रखा है क्या ? तो अभी कुछ दिन पहले ही राजस्थान राज्य के शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने अपने आवास पर आए कुछ शिक्षकों को यह कहते हुए अपने घर से भगा दिया था कि यहां क्या आपने मेरे घर को नाथी का बाड़ा समझ रखा है जो जो जब मन चाहे घा गए। इसके बाद से सोशल मीडिया पर नाथी का बाड़ा लगातार ट्रेंड कर रहा है।
साथियों इस पोस्ट को आगे जरूर शेयर करे ताकि जो लोग इस कहावत की हकीकत नहीं जानते वो इस हकीकत को जान जाए।
एक रिपोर्ट के अनुसार :-
दरअसल, नाथी का बाड़ा कुछ दिन पहले तब अचानक सुर्खियों में आया जब राजस्थान के शिक्षा राज्यमंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने अपने आवास पर ज्ञापन देने आए शिक्षकों को कह डाला कि उन्होंने उनके घर को नाथी का बाड़ा समझ रखा है क्या?
नाथी का बाड़ा एक लोकोक्ति है
राजस्थान में ‘नाथी का बाड़ा’ सिर्फ एक कहावत (लोकोक्ति) ही नहीं बल्कि किस्सा है। यह कहां से और कैसे शुरू हुई इसका इतिहास डेढ़ सौ से दो साल पुराना और बेहद रोचक है।
नाथी का बाड़ा की लोकोक्ति नाथी बाई नाम की एक महिला से शुरू हुई थी। नाथी बाई का जन्म पालीवाल (ब्राह्मण)कुल मे हुआ । नाथी बाई राजस्थान के पाली जिले की रोहट तहसील के गांव भांगेसर की रहने वाली थीं। करीब सौ साल पहले नाथी बाई का निधन हो गया, मगर उनके गांव को लोग आज भी नाथीमाँ नगरी भांगेसर कहते है, जहां उनका परिवार रहता है।
कहते हैं कि नाथीमाँ दानशीलता की साक्षात देवी थीं। जरूरतमंदों के लिए उनके घर पर कमरे अनाज से भरे रहते थे। इसके अलावा वे नकद राशि भी दान करती थीं। खास बात यह है कि दान करते समय नाथी बाई ना तो अनाज को तोलती और ना ही नोटों को गिनती करती थी। वे मदद के लिए लोगों को रुपए मुट्ठी में भरकर देती थीं। उनके घर लोग बेझिझक आकर मदद मांगते थे। ऐसे में उनके घर को नाथी का बाड़ा कहा जाने लगा था। बाड़ा यानी ऐसी जगह जहां से कभी भी कोई भी जाकर मदद ले सकता है।
रियासतकाल में बनाया गया नाथी का बाड़ा यानी नाथी बाई का घर जर्जर हो जाने के कारण उनके परिवार के सदस्यों ने मकान का नवीनकरण करवाकर वहां पक्के मकान बनवा लिए। उनके घर के प्रवेश द्वार पर लगाए गए पत्थर पर खुदाई से ‘नाथीमाँ भवन’ लिखा हुआ है। घर की ओर जाने वाली गली शुरू होते ही एक चबूतरा भी है, जिसे नाथी बाई ने बेटी की शादी में व्रत पालन के दौरान बनवाया था।नाथी बाई ने तालाब के पास एक विशाल नृसिंह-भगवान का मंदिर भी बनवाया था। तथा तालाब के पास उनका समाथी स्थल भी बना हुआ है।
नाथी बाई को लोग नाथी मां कहकर भी पुकारते थे। उनके 69 वर्षीय पड़पौते नरसिंहराम पालीवाल व उनकी पत्नी गंगा पालीवाल ने मीडिया से बातचीत में बताया कि नाथी भवन में नाथी मां की बैठक भी बनी हुई थी। नाथी मां से जुड़ी एक किवंदती है कि उन्होंने अपनी बेटी की शादी में 60 गांवों के लोगों को बुलाया था। स्नेह भोज में घी की नालियां बही थी। घी बहता हुआ गांव के प्रवेश द्वार (फला) तक पहुंच गया था।