दोस्तों स्वदेशी कंपनियों की अगर बात करें तो महिंद्रा आज हमारे देश की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी कंपनियों में शुमार की जाती है क्योंकि मजबूत व्हीकल बनाने के लिए मशहूर इस कंपनी के प्रोडक्ट सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में ही इस्तेमाल किए जाते हैं अब महिंद्रा कितनी सक्सेसफुल और भरोसेमंद कंपनी है यह बात तो हम सभी जानते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि जिस कंपनी को हम हमेशा से महिंद्रा एंड महिंद्रा के नाम से जानते हैं असल में इस कंपनी का नाम पहले महिंद्रा एंड मोहम्मद हुआ करता था अब आज की इस पोस्ट में हम आपको महिंद्रा कंपनी के इतिहास और उससे जुड़ी हुई कुछ ऐसे ही अनसुनी बातें बताने वाले हैं जिन्हें जानकर आप पूरी तरह से हैरान रह जाएंगे तो फिर चलिए अब इंटरेस्टिंग ब्लॉग पोस्ट को शुरू करते हैं |

Table of Contents
इतिहास :
दोस्तों महिंद्रा कंपनी के सफर की शुरुआत साल 1892 में हुई थी क्योंकि इसी साल ही इस कंपनी को स्थापित करने वाले जगदीश चंद्र महिंद्रा जी का पंजाब के लुधियाना शहर में जन्म हुआ था जगदीश चंद्र महिंद्रा जिसे की जेसी महिंद्रा के नाम से भी जाना जाता था वे अपने परिवार में मौजूद 9 भाई बहनों में सबसे बड़े थे जेसी महिंद्रा ने बहुत कम उम्र में ही अपने पिता को खो दिया था और क्योंकि वह परिवार में सबसे बड़े थे इसीलिए पिता के गुजर जाने के बाद से मां और आठ भाई बहननो की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर आ गई थी हालांकि उस समय जेसी महिंद्रा की उम्र भले ही कम थी लेकिन उनका हौसला पर्वतों की तरह बुलंद था और वह हमेशा ही दूर की सोच रखते थे |
शिक्षा :
दरअसल जिस समय भारत में लोग एजुकेशन को कोई खास वैल्यू नहीं देते थे उस दौर में भी उन्होंने पढ़ाई लिखाई के महत्व को बहुत अच्छी तरह से समझ लिया था और यही वजह थी कि उन्होंने अपनी पढ़ाई के साथ ही अपने भाई बहनों को भी अच्छी और उच्च शिक्षा प्राप्त करवाई थी यहां तक कि उन्होंने अपने छोटे भाई कैलाश चंद्र महिंद्रा को हायर एजुकेशन के कैंब्रिज यूनिवर्सिटी तक भेजा था और खुद ही जेसी महिंद्रा ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी जो कि आज के समय में माता जीजाबाई टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट के नाम से जाना जाता है |
नौकरी :
पढ़ाई पूरी होने के बाद साल 1929 में जेसी महिंद्रा को टाटा स्टील कंपनी में एक अच्छी जॉब मिल गई थी जहां उन्होंने साल 1940 तक काम किया था इसके बाद से दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भारत सरकार द्वारा उन्हें भारत का पहला स्टील कंट्रोलर नियुक्त किया गया था वहीं जेसी महिंद्रा के भाई कैलाश चंद्र महिंद्रा यानि केसी महिंद्रा की अगर बात करें तो उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी करने के बाद से कुछ साल अमेरिका में ही जॉब की और फिर उसके बाद साल 1942 में उन्हें अमेरिका के अंदर इंडियन परचेसिंग मिशन का हेड नियुक्त किया गया साथ ही 1945 में जब वह भारत वापस लौट कर आए तो उन्हें भारत सरकार की इंडियन कोल्डफील्ड कमेटी और ऑटोमोबाइल एंड टैक्टर पैनल का चेयरमैन बना दिया गया |
कम्पनी :
हालांकि इसके बाद भी इन दोनों भाइयों को सरकारी और कई निजी संस्थाओं से भी बहुत बड़े-बड़े पद ऑफर पर किए गए थे लेकिन इन्होंने फिर किसी भी पद को स्वीकार नहीं किया क्योंकि तब तक यह दोनों आपस में मिलकर अपना खुद का बिजनेस शुरू करने का मन बना चुके थे दरअसल उस समय भारत अपनी आजादी के लिए लड़ रहा था और जेसी महिंद्रा को इस बात पर पूरा यकीन था कि भारत जल्द ही अपनी आजादी हासिल कर लेगा और साथ ही वह भी अच्छी तरह से जानते थे कि भारत के आजाद हो जाने के बाद से देश के अंदर स्टील उद्योग एक नई ऊंचाइयों को प्राप्त करेगा इसेलिए दोनों भाइयों ने अपना घर बेचा और अपने एक दोस्त मलिक गुलाम मोहम्मद के साथ मिलकर अपने स्टील कंपनी की शुरुआत कर दी जिसका नाम उस समय महिंद्रा एंड मोहम्मद रखा गया था अब आज भले ही महिंद्रा अपने पावरफुल व्हीकल के लिए जानी जाती है लेकिन सच यही है इसकी शुरुआत एक स्टील कंपनी के रूप में हुई थी उस समय दोनों महिंद्रा भाइयों ने यह सोचा था कि वे मलिक गुलाम मोहम्मद के साथ मिलकर अपनी इस कंपनी को देश की सबसे बड़ी और सबसे कामयाब स्टील कंपनी बनाएंगे |
संघर्ष :
लेकिन 1947 में कुछ ऐसा हुआ कि जिसने की सब कुछ बदल कर रख दिया दर असल 1947 में जब देश का बंटवारा हुआ तो फिर मलिक गुलाम मोहम्मद भारत को छोड़कर हमेशा के लिए पाकिस्तान चले गए जहां पर भी पहले तो वित्त मंत्री बने और फिर बाद में पाकिस्तान के तीसरे गवर्नर जनरल बने और दोस्तों इस तरह से अचानक भारत छोड़ने का महिंद्रा भाइयों और उनकी कंपनी पर बहुत गहरा असर पड़ा क्योंकि इस कंपनी में मलिक गुलाम मोहम्मद की हिस्सेदारी भी काफी ज्यादा थी और चूँकि पाकिस्तान चले जाने की वजह से कारोबार से दूर हो गए थे इसीलिए उन्होंने कंपनी से अपनी पूरी हिस्सेदारी वापस ले ली थी वो समय महिंद्रा कंपनी के लिए बहुत ही ज्यादा मुश्किलों से भरा हुआ था और तब ज्यादातर लोगों ने अनुमान लगाया की यह कंपनी अब ज्यादा समय तक नही चल पाएगी लेकिन लोगों ने जैसा सोचा था वैसा कुछ भी नहीं हुआ क्योंकि महिंद्रा भाइयों ने उस कठिन परिस्थिति में भी हिम्मत नहीं हारी और वे लगातार अपनी कंपनी को चलाने का प्रयास करते रहे आखिरकार उन दोनों भाइयों की मेहनत रंग लाई जिसके चलते उनकी कंपनी डूबने से बच गई थी |
नामकरण :
चूँकि अब कंपनी के पार्टनर यानि कि मलिक गुलाम मोहम्मद कंपनी से अलग हो चुके थे इसलिए दोनों भाइयों ने कंपनी का नाम बदलने का निर्णय लिया अब वैसे तो कंपनी का नाम बदलना कोई बहुत ज्यादा बड़ा काम नहीं था लेकिन इसमें दिक्कत यह थी कि महिंद्रा एंड मोहम्मद नाम के चलते कंपनी की सारी स्टेशनरी एम एंड एम नाम से छप चुकी थी और कंपनी की हालत उस समय ऐसी नहीं थी कि वह नई स्टेशनरी पर खर्चा कर सकें इसलिए दोनों महिंद्रा भाई कंपनी को कोई ऐसा नाम देना चाहते थे जिससे कि उनकी यह स्टेशनरी बेकार न जाए इसीलिए काफी सोच विचार करने के बाद से कंपनी का नाम महिंद्रा एंड महिंद्रा रखा गया ताकि इसका शार्ट नेम उसी तरह से बरकरार रहे और पुरानी स्टेशनरी भी वेस्ट ना जाये |
नवाचार :
अब यू तो महिंद्रा कंपनी स्टील के अंदर ठीक-ठाक बिजनेस कर रही थी लेकिन दोनों महिंद्रा भाई अपनी कंपनी में कुछ ऐसा करना चाहते थे जो कि उनसे पहले भारत में और किसी भी कंपनी न किया और यहीं पर केसी महिंद्रा की विदेश में रहने का अनुभव उनके कंपनी के काम आया दरअसल केसी महिंद्रा ने अमेरिका में रहते हुए वहां पर जीप को देखा था और जीप का कांसेप्ट भी इतना ज्यादा पसंद आया कि वे इसे भारत में भी लाना चाहते थे बस फिर क्या था दोनों भाइयों ने विलीस जीप का मैन्युफैक्चरिंग कॉन्ट्रैक्ट जीता और साल 1947 में भारत के अंदर जीप बनाना भी शुरू कर दिया जिसके चलते कुछ ही समय में महिंद्रा को भारत की जीप निर्माता कंपनी के रूप में जाना जाने लगा जीप मैन्युफैक्चरिंग मिली इस कामयाबी के बाद से महिंद्रा ने फिर कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा दर असल जीप बनाने के कुछ समय बाद ही महिंद्रा लाइट Commercial व्हीकल और ट्रेक्टर की भी मैन्युफैक्चरिंग करने लगा था और देखते ही देखते सिर्फ कुछ ही सालों के अंदर यह दुनिया की सबसे बड़ी ट्रैक्टर निर्माता कंपनी बन गयी |
अब आगे चलकर साल 1951 में जगदीश महिंद्रा और 1963 में कैलाश चंद्र महिंद्रा देहांत हो गया था जिसके बाद इस कंपनी की बागडोर महिंद्रा परिवार की अगली पीढ़ी के हाथों में आई और दोस्तों इस तरह समय के साथ इस कंपनी की बागडोर भले ही अलग-अलग हाथों में जाती रही लेकिन फिर भी यह कंपनी लगातार आगे बढ़ते हुए प्रोग्रेस करती रही |
सफ़लता :
अब दोस्तों अगर इस समय की बात करें तो इस समय महिंद्रा एक दो नहीं बल्कि 150 से भी ज्यादा कंपनियों का एक विशाल ग्रुप बन चुकी है साथ ही महिंद्रा का यह बिजनेस दुनिया के 100 से भी ज्यादा देशों में फैला हुआ है जिसके जरिए 2.5 लाख से भी ज्यादा लोगों को रोजगार मिलता है और इस समय महिंद्रा कंपनी की बागदौड़ जगदीश चंद्र महिंद्रा के पोते आनंद महिंद्रा के हाथों में है जो कि साल 2012 से ही कंपनी के चेयरमैन व एमडी के पद को संभाले हुए हैं दर असल आनंद महिंद्रा ने साल 1981 में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एमबीए कंप्लीट करते ही कंपनी को ज्वाइन कर लिया था और जब से कंपनी की बागडोर उनके हाथों में आई है तब से महिंद्रा ने और भी ज्यादा तेजी से प्रोग्रेस किया है और इससे यह पता चलता है कि आनंद महिंद्रा एक बहुत अच्छे बिजनेसमैन हैं और इस बात में कोई शक नहीं है या अपने नेतृत्व में महिंद्रा कंपनी को कामयाबी की और भी ऊंचाइयों पर ले कर जाएंगे
तो साथियों यह थी कहानी महिंद्रा एंड महिंद्रा की, आज का यह पोस्ट आपको पसंद है तो जरुर शेयर करे |