Google ने Doodle बनाकर Balamani Amma का 113वें जन्मदिन को मनाया

मलयालम साहित्य की दादी के नाम से पुकारी जाने वाली बालमणि अम्मा का डूडल बनाकर गूगल ने उनके 113वें जन्मदिन को मनाया।
नलपत बालामणि अम्मा एक भारतीय कवि थे जिन्होंने मलयामल में अनेक साहित्यों की रचना की थी, जिनके सम्मान पर आज गूगल ने डूडल भी बनाया है।

जन्मदिन:

बलमनी अम्मा का जन्म आज ही के दिन 1909 में हुआ था, उनका जन्म त्रिषुर जिलें में स्थित पुन्नयुरकुलम में उनके पैतृक घर नालापत में हुआ था।
बलमनी अम्मा को बचपन की बचपन से ही साहित्य पढ़ने व लिखने में काफी रूचि रही है, जिसके कारण उनको अनगिनत पुरूस्कारों से भी नवाजा जा चुका है, जिनमे साहित्यिक का सर्वश्रेष्ठ पुरूस्कार सरस्वती सम्मान भी शामिल है, इसके अलावा उनकों पद्म विभूषण जिसे भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरूस्कार भी कहते है, उससे भी नवाजा जा चुका है।
आपकों जानकार हैरानी होगी की अम्मा ने कभी भी स्कूल में जाकर शिक्षा अर्जित नहीं की, बल्कि उनके चाचा नलप्पट नारायण मेनन, जो उस समय के एक बेहद लोकप्रिय मलयाली कवि थे उन्होंने अम्मा को घर ही शिक्षा दी थी, क्योंकि उस दौर में लड़कियों की शिक्षा पर इतना जोर नही दिया जाता था, मगर बलमनी अम्मा ने घर ही प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करके इतना कुछ सीख लिया था जो शायद कोई स्कूल में जाकर ही सिखता हो, क्योंकि उनके पास किताबों और कृतियों का एक प्रभावशाली संग्रह था जिसका अध्ययन अम्मा ने कम उम्र में ही कर लिया था।

शादी:

साथियों बलमनी अम्मा की शादी 19 वर्ष की उम्र में ही कर दी गई थी, उनकी शादी मलयालम अखबार मातृभूमि के प्रबंध निदेशक और प्रबंध संपादक वीएम नायर से हुई थी। बालमणि अम्मा के 4 बच्चे भी थे जिनके नाम सुलोचना, श्याम सुंदर, मोहनदास, और प्रसिद्ध लेखिका कमला दास थी।
कमला दास को जिन्हें उनकी साहित्यक रचनाओं के कारण 1984 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

साहित्य रचनाऐं:

साथियों 1930 में, बलमनी अम्मा ने 21 वर्ष की आयु में, पहली कविता कोप्पुकाई शीर्षक से प्रकाशित की, जिसके बाद से अम्मा की चर्चा रचना शेली को देखते हुए साहित्य जगत के उस दौर के सभी दिग्गज करने लगे, इसके बाद एक प्रतिभाशाली कवि के रूप में उनकी पहली पहचान को चीन साम्राज्य के पूर्व शासक परीक्षित थंपुरन से हुई, जिन्होंने उन्हें साहित्य निपुण पुरस्कार से भी सम्मानित किया।
भारतीय पौराणिक कथाओं के एक उत्साही पाठक के रूप में, अम्मा की कविता ने महिला पात्रों की पारंपरिक समझ पर प्रकाश डालने का प्रयास किया था, उनकी शुरूआती ज्यादातर कविताओं में मातृत्व पर विशेष बल दिया गया था जिसके कारण उनको आगे चलकर “मातृत्व की कवयित्री” के रूप में भी जाना जाने लगा।
इसके अलावा उनके कार्यों ने पौराणिक पात्रों के विचारों और कहानियों को अपनाया, लेकिन महिलाओं को एक शक्तिशाली किरदार के रूप में अंकित किया जो सामान्य नारी के रूप में जानी जाती थी, उनकी सबसे प्रमुख साहित्य कृति में अम्मा(1934), मुथस्सी(1962) और मजुविंते कथा(1966) थी।
बालमणि अम्मा ने अपने जीवन काल में कविता, गद्य और अनुवाद के 20 से अधिक संकलन प्रकाशित किए।

निधन:

बलमनी अम्मा का निधन 29 सितम्बर 2004 को कोच्चि में हुआ, उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया, बच्चों और पोते-पोतियों के प्रति उनके प्रेम का वर्णन करने वाली उनकी कविताओं ने उन्हें मलयामल कविता की अम्मा(माँ) और मथुस्सी(दादी) की उपाधि दी।

Image Credit : Goodle Doodle

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