मोदी के तीनों काले कृषि कानूनों को समझों Farmers Bill explained

साथियों आपकों 2016 के मोदी का वो बयान तो याद ही होगा जिसमें उन्होंने कहा था कि 2022 आते-आते हम किसानों की आय को दुगुना कर देंगे इसी बयान को तरजीह देते हुए सरकार ने तीन काले कृषि बिलों को सदन के समाने रखा और जैसे-तैसे ही करके इन बिलों को सदन में पास करवा दिया जब से सरकार यह तीनों बिल लाई है तब से देश भर के किसान सड़कों पर आ गये और आंदोलन कर रहे और दिल्ली को चारो ओर से घेर लिया गया है मगर सरकार का कहना है कि यह तीन कृषि कानून किसानों की आय को दुगुना करने में मदद करेंगे जब सरकार से पूछा जाता है कि यह बिल किसके कहने पर आप लाए ? आपने किस किसान से सलाह ली तो सरकार एकदम चुप हो जाती है फिर से वहीं राग अलापना शुरू कर देती है कि यह बिल किसानों के लिए बहुत ही फायदेमंद है।
तो साथियों आज के इस पोस्ट में हम मोदी सरकार द्वारा लाए गए इन तीनों बिलों का बिल्कुल ही बारीकी से विश्लेषण करेंगे और जानेंगे कि यह बिल कैसे किसान की रीड की हडडी तोड़ने वाले बिल है।
अगर आपको इन बिलों को समझना है तो हम आपकों एक कहानी के माध्यम से इन बिलों को समझा देते है ताकि आपकों यह बिल अच्छे से समझ आ जाऐ।

उदाहरण:

माना कि कोई एक किसान है जिसका नाम रामपाल है वो अपनी जमीन पर बरसों से खेती करता आ रहा है और वो अपनी जमीन को अपनी मां मानता है उसके पास माना कि 2 हेक्टेयर जमीन है। अगर जमीन के आंकड़ों पर नजर दौड़ाये तो हमारे देश में 85 प्रतिशत ऐसे किसान है जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम जमीन है। अब रामपाल चाहता है कि उसकों खेती से अच्छा-खासा पैसा कमाऐ ताकि वो अपने घर खर्च के अलावा अपनी बेटी की शादी व पढ़ाई का खर्च आसानी से उठा सके इसके बाद उसकों मालूम चलता है कि भारत सरकार ने किसानों के लिए MSP ( Minimum support price ) नाम की सरकार की योजना का पता चलता है जिसमे सरकार ने 23 फसलों पर एमएसपी को लागू कर रखा है जैसे मूंग पर सरकार ने 7000 रूपए का और चना जैसी फसलों पर 4900 रूपऐ का एमएसपी लगा रखा है इसके बाद रामपाल नाम के किसान ने अपनी जमीन पर मूंग की फसल को बो दिया और उस पर दिन रात मेहनत करने लगा ताकि फसल जमीन पर ज्यादा से ज्यादा उतरे। जब चार-पांच महीने बाद जब उसकी फसल पककर तैयार हो जाती है तो वो उस मूंग को ले जाता है APMC मंडी में जहाँ उसको उम्मीद रहती है कि मेरा यह मूंग सात हजार से तो ऊपर ही बिकेगा जिससे मुझे अच्छी खासी कमाई भी हो जाएगी मगर मंडी जाने के बाद उस पता लगता है कि एमएसपी तो सिर्फ कागजों में यहाँ पर बिचोलिए उस फसल की कीमत 6 हजार रूपए प्रति क्विटल ही आंक रहे है और उसको बोला जा रहा है कि इससे ऊपर हम कुछ नहीं दे सकते।
अब उसको लगता है कि अगर वो अपनी फसल को 6 हजार रूपए में दे देगा तो उसे तो नुकसान हो रहा है क्योंकि वहां पर जो फसल खरीदने वाले बिचोलिये होते है जो कि उनकी फसल कम दामों में खरीदते है और उसी फसल को फिर से आगे एमएसपी की रेट पर आगे बेचते है मंडियों में बैठे अनेक अधिकारियों की उनके साथ साठगांठ होती है यह अधिकारी अपने रजिस्टर में फर्जी बिल फाड़ देते है कि हमने यह-यह फसल एमएसपी के दाम पर खरीदी है और सरकार से वो पैसा ले लेते है। अभी वर्तमान में भारत में 7000 APMC मंडियां है इन मंडियों में बैठे बिचोलियो को सरकार द्वारा प्राप्त लाइसेंस होता है कि ढाई प्रतिशत से लेकर 10 प्रतिशत तक किसान से अपनी दलाली वसूल कर सकते है अब होता कुछ यूं है कि एक तो किसान को एमएसपी नहीं मिल रहा होता है और दुसरा यह दलाल और ढाई प्रतिशत की दलाली ले रहे है मतलब जो फसल 6000 रूपए में बिक रही है उस पर भी यह 40 रूपए की दलाली ले रहे है अब किसान की फसल की कीमत 5960 रूपए हो जाती है अब रामपाल के पास एक ही स्थिति बचती है वो घाटा खाकर उस फसल को बेच दे जब रामपाल अपनी फसल मूंग को 5960 रूपए प्रति क्विटल में बेच देता है तो उसको अपनी फसल के पीछे बड़ा घाटा लगता है जब उसको पता चलता है कि इस बार उसे बड़ा घाटा हुआ है और उसको घर खर्चा व बेटी की शादी भी करनी है इन सब बातों पर गौर करता है और आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है और यह कोई नई बात नहीं है एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में हमारे देश में 10000 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है।
किसान की आत्महत्या के पीछे उसकों खेती में लगने वाला घाटा है आज के समय में ऐसे ही कोई अपनी जान नहीं देता आज भारत की स्थिति यह है कि यहां पर किसान कभी नहीं चाहता है कि उसका बेटा किसान बने वो अपने बेटे को पढ़ाकर लिखा कर या तो बाहर भेजना चाहता है या सरकारी नौकरी दिलाना चाहता है यह भारत के किसान की एक कड़वी सच्चाई है जो आप सब को जाननी चाहिए।

सरकार की राय:


अब इन बिलों के माध्यम से सरकार की राय है कि अगर हम इन तीनों बिलों को लागू कर दे तो मंडियों में भ्रष्ट्राचार खत्म हो जाएगा और किसान को फसल पर अच्छा मुनाफा मिलेगा।

पहला बिल:

Farmers Produce Trade and Commerce (Production and Facilitation) Act, 2020


पहले बिल के माध्यम से सरकार कहना चाहती है कि अब किसान पर कोई दबाव नहीं रहेगा कि वो अपनी फसल अपने राज्य में बचे कहना का तात्पर्य है कि किसान अब भारत में कहीं भी जाकर अपनी फसल बेच सकता है।
अब सरकार को कौन समझाए की किसान की स्थिति तो वैसे ही बदहाल है अगर राजस्थान का किसान अपनी फसल हरियाणा में ले जाकर बेचेगा तो उस फसल को हरियाणा ले जाने का खर्चा किसान कहां से देगा? और मध्यम व निम्न तबके के किसान जिनकी पहले ही फसल कम हुई है वो कैसे अपनी फसल को दुसरे राज्य में ले जाएगा?
पहले बिल में सीधा फायदा बड़े व्यापारी व बिचोलियो को हो रहा है जो कि एक राज्य से कम भावों में फसल खरीदकर दुसरे राज्य में बेचेगा।
आज से कुछ समय पहले जब राजस्थान का किसान अपना बाजरा हरियाणा बचने गया तो खट्टर सरकार ने साफ-साफ इनकार कर दिया कि वो राजस्थान का बाजरा नहीं खरीदगें इसके अलावा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चाहौन ने भी किसी अन्य राज्य की फसल को अपने राज्य में खरीदने से मना कर दिया था।
इसी बिल में सरकार ने APMC मंडी को ही खत्म करने की बात कहीं है। सरकार का मानना है कि APMC मंडी का किसान फायदा नहीं ले पा रहा है इसलिए हम APMC मंडी को ही हटा देते है इसी बिल में सरकार ने प्राइवेट मंडी को वरीयता दी है।
मोदी सरकार अब नहीं चाहती है कि अब सरकार अनाज का भंडारण करे FCI ( Food Corporation of India ) भारत में अभी 6 प्रतिशत किसानों से MSP पर फसल को खरीद रही है और आगे उस फसल को लेने वाले भी नहीं है तो सीधा-सीधा भारत सरकार को ही घाटा हो रहा है इस घाटे से बचने के लिए भारत सरकार मंडियों का प्राइवेट करने पर तूली है।

दुसरा बिल:

Farmers (Empowerment and Protection) Agreement on Price Assurance and Farm Services Act, 2020


अब इस बिल में सरकार ने कांन्ट्रेक्ट फार्मिंग को बढ़ावा दिया है कांन्ट्रेक्ट फार्मिंग को समझने के लिए मान लीजिए एक आटा बनाने वाली कंपनी है उसको पता चलता है कि इस गांव में गेहूं की पैदावार अच्छी होती है तो वो कंपनी उस गांव के साथ एक काॅन्ट्रेक्ट कर लेगी कि हम गेहूं का प्रति क्विटल इतना प्राइज देंगे। चलो यहां तक तो ठीक है इसके बाद भी अनेक सवाल है जिनके जवाब सरकार नहीं दे रही है।
कंपनी ने अगर किसानों को पैसा नहीं दिया तो ?
अगर गेहूं में कंपनी ने कोई कमी निकाल दी तो ?
फसल को नहीं लिया तो ?
ऐसी स्थिति में फिर क्या होगा ? अगर आपकों लगता है कि ऐसी स्थिति होने पर किसान कोर्ट में जा सकता है तो नहीं वो सिर्फ ज्यादा से ज्यादा एसडीएम या कलेक्टर के पास अपील दायर कर सकता है इससे अधिक किसान के पास कोई भी विकल्प नहीं बचेगा और आप ही जानते होंगे की कोर्ट कचहरी में गरीब किसान की कौन सुनेगा ? और इतना किसान के पास पैसा कहां है कि वो अमीर साहूकारों से कोर्ट में झगड़ सके।
साथियों इन बिलों के माध्यम से आज तो सरकार अपने आप को इन मंडियों से पीछे खींच रही है कल को यही प्राइवेट कंपनियां किसानों के साथ मनमानी करना शुरू कर दिया तो किसान बेचारा कहां जाएगा। इन बिलों के जरिए सरकार किसानों पर प्राइवेट कंपनियों को थोपना चाहती है और सीधा बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाना चाहती है।

तीसरा बिल:

Essential Commodities (Amendment) Act, 2020


Essential Commodities एक्ट जो पहले था उसमें साफ तौर पर लिखा था कि आप अनाज का भंडारण नहीं कर सकते लेकिन वर्तमान के बिल में सरकार ने कह दिया है कि आप अनाज का भंडारण कर सकते है अगर देश में युद्ध व आपातकाल जैसी स्थिति आ जाए तो आप भंडारण नहीं कर सकते है उसके अलावा आप जितना मर्जी अनाज का भंडारण कर सकते है।
अब इस स्थिति को भी हम एक उदाहरण के माध्यम से समझते है माना कि कोई कंपनी ने 100 गांवों से प्याज का सौदा किया कि वो 20 रूपए किलों प्याज खरीदेगी और किसानों ने अपना प्याज उस कंपनी को बेच दिया अब आप भी जानते है कि बड़ी कंपनियों के पास पैसा होता है कि वो फसल का भंडारण कर सकते है और कुछ महीने उस प्याज को अपने पास भंडारण करके रखा जब बाजार में प्याज की मांग बढी तो उस कंपनी ने अपनी खरीदारी से दुगुने या तिगुने पैसों में उस प्याज को बेचना शुरू कर दिया ऐसी स्थिति में आम जनता क्या करेगी?
क्योंकि आप ही जानते है कि कोई मध्यम या गरीब किसान तो अपनी फसल का भंडारण नहीं कर सकता उसके पास तो इतने पैसे है नहीं कि वो भंडारण कर सके। इस बिल से सरकार की साफ मंशा नजर आती है कि वो उद्योगपातियों को देश में बढ़ावा दे रही है।

प्राइवेट कंपनीयों की मनमानी-

अगर सरकार इन तीनों बिलों को वापस नहीं लेगी तो देश भर में प्राइवेट कंपनीयों का बोलबाला रहेगा किसानों की कोई नहीं सुनेगा।

उदाहरण:

साथियों जब जिओ ने अपना सिम लाँच किया तो उस समय वो ग्राहकों को फिर इंटरनेट व काॅलिंग सुविधा दे रहा था जब उसको लगा कि हां अब जिओ के अच्छे खासे ग्राहक हो गए है तो उसने इंटरनेट व काॅलिंग पर कुछ रकम चार्ज करना चालू कर दिया उसके बाद जिओं ने बाजार से सभी कंपनियों की छुटटी कर दी अब उसकों लग रहा है कि हां अब उसका मुकाबला करने वाला कोई नहीं है तो उसने उसी डाटा व काॅलिंग का चार्ज क्या रखा है वो तो आप भली भांति जानते होंगे।
अगर यहीं स्थिति कृषि क्षेत्र में हुई तो क्या होगा ? आपकों अभी तो यह निजीकरण काफी फायदा पहुंचाएगा मगर समय के साथ-साथ यहीं निजीकरण आपकों अन्दर ही अन्दर खोखला कर देगा। इसलिए साथियों आपके पास मौका है किसानों के साथ जुड़िए और सरकार को मजबूर कीजिए की यह बिल हमें किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं है। भारत एक कृषि प्रधान देश है अगर देश का किसान ही नहीं बचेगा तो फिर कैसे देश बच पाएगा।
साथियों इस पोस्ट को जितना हो सके उतना ज्यादा शेयर करे जो लोग अभी भी इन बिलों को सहीं ठहराने में लगे हुए है उनको भेजिए और किसान आंदोलन की मुहिम का हिस्सा बनिए ।

जय जवान – जय किसान

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