नमस्कार साथियों आज के इस पोस्ट में हम टूथपेस्ट के बाजार की लीडर, कंपनी कोलगेट की सफलता की कहानी जानेंगे, इसके साथ ही हम कोलगेट के इतिहास व इसके अब तक के सफर को भी बारीकी से जाननें का प्रयास करेंगे।
कुछ उत्पादों की पहुंच घर-घर तक है, दुनिया का कोई भी कोना हो, ये उत्पाद वहां मिल जाएंगे, कोलगेट ऐसा ही एक ग्लोबल ब्रांड है, 216 साल पहले अमेरिका में शुरू हुई कंपनी भारतीय बाजार में 85 साल पहले आई, फिर भारत में रच-बस गई, अमेरिका का सबसे लोकप्रिय टूथपेस्ट कोलगेट, चीन में डाली टूथपेस्ट के साथ मिलकर बिजनेस करता है, भारत में ‘ब्रांड इक्विटी मोस्ट ट्रस्टेड ब्रांड्स’ की सूची में टाॅप-5 में रह चुके कोलगेट के पूर्व सीईओ राम राघवन का मानना है कि कोलगेट की सफलता का राज समय के साथ बदलाव है, 2019 में कंपनी ने 50 साल बाद बदलाव करते हुए स्ट्राॅग्ग टीथ (अमीनो शक्ति के साथ) उत्पाद बाजार में उतारा, विभिन्न कैंपेन में सेलिब्रिटीज को जोड़ा, आज की ब्रांड स्टोरी में पढ़ते हैं कि कैसे कोलगेट सालों से नंबर वन बनी हुई है।
शुरूआती सफर:
1806 में ब्रिटिश-अमेरिकन उद्यमी विलियम कोलगेट ने कोलगेट की शुरूआत की थी, शुरूआत में वह साबुन-मोमबत्तियां बनाते थे, 1857 में विलियम की मृत्यु के बाद उनके बेटे ने बिजनेस आगे बढ़ाया, 1873 में कंपनी ने कांच की शीशियों में सुगंधित टूथपेस्ट बेचना शुरू कर दिया, फिर 1896 में पहली बार इस्तेमाल होने वाले ट्यूब में टूथपेस्ट की बिक्री शुरू हुई, 1911 में मार्केटिंग के तहत स्कूल्स और दंत चिकित्सकों को 20 लाख टूथपेस्ट फ्री बांटे, 1930 में कोलगेट अमेरिका के शेयर बाजार में लिस्टेड हुई, 1953 में कपंनी का आधिकारिक नाम कोलगेट-पाल्मोलिव पड़ा, पाकिस्तान में कोलगेट नेशनल डिटर्जेट लिमिटेड नाम से 1977 में लिस्टेड हुई, साल 1968 में कोलगेट ने पहली बार अपने उत्पादों में फ्लोराइड मिलाना शुरू कर दिया, आज कोलगेट के 200 से ज्यादा उत्पाद बाजार में हैं।
कोलगेट के 216 साल के इतिहास में कंपनी साबुन और मोमबत्ती से होते हुए टूथेस्ट, पाल्मोलिव नाम से पर्सनल केयर प्रोडक्ट और अब पेट्स के लिए भी उत्पाद बना रही है, कोलगेट करीब 200 देशों में अपनी सब्सिडरी कंपनियों के जरिए उत्पाद बेचती है, लेकिन अमेरिका, भारत और पाकिस्तान में कोलगेट स्वतंत्र पब्लिक लिस्टेड कंपनियां है।
1937 से भारत में आधिकारिक रूप से बिजनेस कर रही है कोलगेट-पोल्मोलिव इंडिया कंपनी की एमडी और सीईओ प्रभा नरसिंहन हैं।
रणनीति:
जानकारों के मुताबिक ओरल केयर के बाजार में टेक्नोलाॅजी अवरोध नहीं है, यहां टक्कर मार्केटिंग की है और इसमें कोलगेट ने हमेशा से बाजी मारी, कोलगेट की 1980 में भारतीय बाजार में अच्छी-खासी पकड़ थी फिर क्लोज-अप आया और इसने टूथपेस्ट का रंग-रूप और मुंह में इसका स्वाद-अहसास पूरी तरह बदल दिया, इससे कोलगेट की रातों की नींद उड़ गई, कोलगेट-प्रतिस्पर्धियों के उत्पाद लाॅन्च का इंतजार करती है, अगर उनका उत्पाद सफल है, तो वह उसी सेगमेंट में अपने लाॅन्च कर देती है, कंपनी रिसर्च पर बहुत ज्यादा पैसा खर्च नहीं करती, ब्रांड रिकाॅल वैल्यू के कारण लोग खुद-ब-खुद कोलगेट के उत्पाद खरीद लेते हैं, इन सालों में बाकी ब्रांड्स से मुकाबला करने के लिए कोलगेट ने सब-ब्रांड्स जैसे कोलगेट जैल, कोलगेट साल्ट और कोलगेट टोटल, कोलगेट डायबिटिक्स आदि लाॅन्च किए।
सफलता:
कोलगेट ने दुनियाभर में जबरदस्त मार्केटिंग के साथ डिस्ट्रीब्यूशन चैनल पर काम किया, भारत में एंट्री के साथ ही कंपनी ने गांव तक मजबूत नेटवर्क बनाया, कंपनी चाहती थी कि कोलगेट हर घर में बिके, इसने अपनी पैकिंग में लाल रंग हाइलाइट किया, ताकि दुकानों में यह अलग दिखे, स्कूल में फ्री डेंटल चैक अप और सैंपल देकर घरों में जगह बनाई, स्माइल कैंपेन के अलावा कोलगेट बड़े आयोजनों में मुफ्त सैंपल बांटती है, बाजार में पैठ बनाने के लिए कोलगेट ने अधिग्रहण भी किए, 1960-70 के दशक में कोलगेट का मुकाबला फोरहन्स टूथपेस्ट से था, लेकिन आज यह ब्रांड कहीं भी नहीं है, फिर बाद में बिनाका बाजार में आया, जो बाद में सिबाका हुआ, जिसे बाद में कोलगेट ने खरीद लिया, भारत में दांतों की देखभाल से जुड़ा बाजार 15 हजार करोड़ रूपए से अधिक का है, इसमें भी टूथपेस्ट की बिक्री सबसे ज्यादा है, इसीलिए कोलगेट इसी सेगमेंट पर फोकस कर रही है।
कोलगेट इंडिया की पिछले वित्तिय वर्ष में 5066 करोड़ रूपए की सेल्स रही, 1078 करोड़ रूपए का मुनाफा रहा, वहीं ग्लोबल सेल करीब 1.5 लाख करोड़ रूपए की रही।
