Britannia Industries Success Story | ब्रिटेनिया इंडस्ट्री सफलता की कहानी

नमस्कार साथियों, आज के इस पोस्ट में हम बिस्किट कंपनी ब्रिटेनिया इंडस्ट्री की सफलता की कहानी जानेंगे।
स्थापना: 1892
मार्केट कैप: 1.04 लाख करोड़ रूपए।

स्थापना1892
मार्केट कैप1.04 लाख करोड़ रूपए।

बिस्किट इकलौता ऐसा उत्पाद है, जिसकी दुनियाभर में खपत लगभग एक जैसी हैं बस फर्क स्वाद और इसके कच्चे माल का हो जाता है। कहीं स्वाद में मीठी-नमकीन बिस्टिकट पंसदीदा है, तो कही चलन ग्लूटेन फ्री बिस्किट का ज्यादा है। भारत में बिस्किट का बाजार 45 हजार करोड़ रूप्ए का है और इसमें ब्रिटेनिया और पारले एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी और मार्केट लीडर हैं। पिछले 7-8 सालों में अपनी डीलरशिप और रिटेल पहुंच को तिगुना करने के बाद ब्रिटेनिया, सेल्स वैल्यू के हिसाब से बिस्किट कैटेगरी में मार्केट लीडर बनी हुई है। ब्रिटेनिया इंडस्ट्रीज की शेयर वैल्यू में मजबूती के अलावा अपने कुछ उत्पादों को लेकर कंपनी चर्चाओं में है। ब्रिटिश स्वामित्व से लेकर भारत में नुस्ली वाडिया के हाथों में आने तक की इसकी कहानी भी उतनी ही रोचक है।

शुरूआत:

1892 में कुछ ब्रिटिशर्स ने कोलकाता के एक छोटे से कमरे में कंपनी शुरू की थी। 1897 में गुप्ता ब्रदर्स ने इसे खरीद लिया। 1918 में सीएच होम्स नाम के अंग्रेज इसमें पार्टनर बन गए और ब्रिटेनिया बिस्किट कंपनी लिमिटेड बनी। फिर यह अमेरिका की पीक फ्रीन एंड कंपनी की सब्सिडरी बनी। फिर ब्रिटेन की बिस्किट्स इंटरनेशनल लिमिटेड की हिस्सेदारी रही। बाद में इसके मालिक बदलते गए, लेकिन बिस्किट के उत्पादन पर कोई खास असर नहीं पड़ा।

रणनीति:

मार्च 2020 में देश में लगे लाॅकडाउन के दौरान ब्रिटेनिया के मैनेजिंग डायरेक्टर वरूण बैरी बिक्री बढ़ाने के लिए 80ः20 का फाॅर्मूला लाए। ब्रिटेनिया की 95 फीसदी सेल्स बिस्किट, बेकरी और डेयरी उत्पादन से आ रही थी। रणनीति स्पष्ट थी कि 20 प्रतिशत सेल्स लाने वाले उत्पादों (गुड डे, मिल्क बिकीज, मैरी गोल्ड, न्यूट्री चाॅइस) को प्राथमिकता दी जाएग। इससे कंपनी का अप्रैल-जून क्वार्टर का रेवेन्यू 3384 करोड़ रहा। यह पिछले साल के उस तिमाही के मुकाबले 26 प्रतिशत की ग्रोथ थी।

रोचक:

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत में शासन कर रही ब्रिटिश सरकार को सैनिकों के लिए बिस्टिकट की जरूररत थी। इसके बाद कंपनी ने 95 प्रतिशत क्षमता के साथ काम शुरू कर दिया। ब्रिटेनिया ने संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के लिए साल 2000 की शुरूआत में ग्लूकोज बिस्किट बनाना शुरू किए। 11 सालों में 32 हजार टन से ज्यादा बिस्किट की आपूर्ति की गई। इसके बाद कंपनी को फोर्टिफाइड ( आयरन, विटामिन युक्त) बिस्किट लाॅन्च करने का आइडिया आया।

विवादों का इतिहास:

130 सालों की कारोबारी यात्रा में ब्रिटेनिया के स्वामित्व और नियंत्रण को लेकर काफी खींचातनी हुई। गुप्ता ब्रदर्स के बाद, ब्रिटेनिया पीक फ्रीन एंड कंपनी कीे सक्सिडरी बनी। फिर ब्रिटेन की बिस्टिट्स इंटरनेशनल लिमिटेड की हिस्सेदारी रही। 1978 में ब्रिटेनिया का पब्लिक इष्यू आने से पहले फेरा के नियमों के तहत भारतीय हिस्सेदारी 62 प्रतिशत होनी चाहिए थे। इस तरह ABIL की हिस्सेदारी घटकर 38 फीसदी हो गई। इसके तुरंत बाद सिंगापुर में बिजनेस कर रहे राजन पिल्लई ने इसमें रूचि दिखाई। पिल्लई ने स्टैंडर्ड ब्रांड्स के साथ संयुक्त उपक्रम शुरू किया। फिर पिल्लई अमेरिका की तंबाकू कंपनी आरजेआर नाबिस्कों से जुड गए। नाबिस्को मेजर पार्टनर बन गई ओर पिल्लई ने 1987 में उन्होंने ब्रिटेनिया के 11 प्रतिशत शेयर खरीद लिए। दिसंबर 1988 में कुल 38 फीसदी शेयर अपने नाम कर लिए। इसके बाद नुस्ली वाडिया की एंट्री हुई और उन्होंने एबीआईएल के प्रतिनिधयों के साथ टाइ-अप की बात शुरू की। यह विवाद 1995 में पिल्लई की बीमारी से मौत के बाद खत्म हुआ। इसके बाद वाडिया और फ्रेंच ग्रुप डेनाॅन के बीच विवाद शुरू हुआ। 2009 में वाडिया ने डेनाॅन की हिस्सेदारी को 200 मिलियन डाॅलर में खरीद लिया।

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ब्रिटेनिया का 130 सालों का सफर :

  • 1892 में 295 रूपए के निवेश के साथ ब्रिटेनिया की शुरूआत हुई।
  • 1918 में पब्लिक लिमिटेड कंपनी के तौर पर स्थापित हुई। बेकरी और सोयाबीन उत्पाद बेचना शुरू किया।
  • 1939-45 द्वितीय विष्वयुद्ध में ब्रिटिश-भारतीय सैनिकों के लिए बिस्किट की 95 प्रतिशत सप्लाई आरक्षित की गई।
  • 1979 में ब्रिटेनिया बिस्किट कंपनी लिमिटेड से बदलकर ब्रिटेनिया इंडस्ट्रीज लिमिटेड नाम हुआ।
  • 1983 में कंपनी की सेल्स 100 करोड़ पार कर गई।
  • 1993 में नुस्ली वाडिया, फ्रेंच ग्रुप डेनोन के साथ मिलकर कंपनी में बराबरी के साझेदार बने।
  • 2004 में इसे सुपरब्रांड का तमगा मिला। उत्पादन तीन लाख टन से ऊपर चला गया।
  • 2017 में ग्रीक कंपनी से करार हुआ।
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