
महात्मा गांधी और बाबा साहब अम्बेडकर देश के दो महान स्वतंत्रता सेनानी लेकिन क्या आप जानते है कि दोनों के बीच भी एक समय ऐसा आया जब दोनों के बीच काफी मतभेद बढ़ गए थे इन दोनों के बीच बहस का मुख्य कारण बना जातिवाद। साथियों आज डाॅ. भीमराव अम्बेडकर की 130वीं जयंति है जिन्हें हम आमतौर पर बाबा साहब भीमराव के नाम से भी पुकारते है आज के इस पोस्ट में हम आपकों बाबा साहब की जातिवाद को लेकर उनकी सोच और उनके द्वारा उठाए गए कदमों पर विस्तार पर चर्चा करेंगे।
जन्म: डाॅ. बी. आर अम्बेडकर का जन्म महार जाति में हुआ था जो कि एक दलित जाति है और बचपन से ही उन्होंने जातिवाद के दंश का बड़े पैमाने पर झेला था जब भी वो स्कूल जाते थे तो वो और उनके भाई इकलौते दलित पढ़ने वाले बच्चे थे उन्हें कहा जाता था कि वो घर से एक बोरी लेकर आए जिन पर वो बैठकर पढ़े उन्हें बाकी अगड़ी जाति के बच्चों से दूर बिठाया जाता था उन्हें बाकी आम बच्चों वाले नल से पानी भी नहीं पीने दिया जाता था पैसे और समाज के द्वारा लगातार बनाए जा रहे उन पर दबाव के कारण उनके भाई को बीच में ही पढ़ाई को छोड़नी पड़ी थी लेकिन अम्बेडकर ने किसी भी कीमत पर पढ़ाई नहीं छोड़ने का मन बना लिया था अम्बेडकर पढ़ाई में काफी तेज-तर्रार थे आगे चलकर उन्हें छात्रवृति भी मिली जिसके कारण वह अपनी पढ़ाई आगे सूचारू रख पाए इसके अलावा बड़ौदा के महाराजा ने भीमराव की पढ़ाई के लिए काफी सहयोग किया।
1913 में भीमराव ने अपनी पढ़ाई के लिए कोलंबिया भी गए इसके बाद उन्होंने अपनी डाॅक्टरेट की पढ़ाई लंदन स्कूल ऑफ़ इकाॅनाॅमिक्स से की। इतनी पढ़ाई करने के बाद भी अम्बेडकर पर जातिवाद का धब्बा हावी रहा उन्होंने अपने जीवन के हर मोड़ पर जातिवाद के जहर को पीया। जातिवाद का मुख्य कारण अम्बेडकर हिन्दू धर्म को मानते थे यहां तक की कई मौके ऐसे भी आए जब भीमराव ने इस धर्म की खुलकर आलोचना भी की थी अपने कई लेखों में अम्बेडकर ने न सिर्फ हिन्दू धर्म पर सवाल उठाए है बल्कि इस्लाम की भी उन्होंने काफी आलोचना की है उन्होंने वेदों को बेकार तक बता दिया था और उन्होंने कहा था कि भारत ही नहीं बल्कि दुनिया में धर्म नाम की कोई भी चीज मौजूद नहीं होनी चाहिए।
दूसरी तरफ महात्मा गांधी धर्म से हिंदू थे उनके ज्यादातर नियम और सूझाव धर्म से आते थे यहां तक की वो गीता को सर्वोच्य मानते थे और सही मायनों में धार्मिक होने के बावजूद भी अन्य धर्मों का भी सम्मान करते थे कई बार गांधी जी पर भी यह आरोप लगते आए है कि वो अपने धर्म के प्रति नदारद से नजर आते थे। कई बार लोगों द्वारा यह भी कहा जाता रहा है कि महात्मा गांधी के जातिवाद पर स्पष्ट विचार नहीं थे कई मौका पर उन्होंने जातिवाद का समर्थन भी किया है गांधी जी के नजरिए के अनुसार जाति धर्म का मूल है और गांधी जी वेदों पर काफी विश्वास भी रखते थे। कई मौको पर गांधी जी ने यह भी कहा है की छूआछूत हिन्दूत्व का भाग नहीं हैं छूआछूत एक पाप है और छूआछूत हिन्दूओं के लिए एक धब्बा हैं।
छूआछूत को खत्म करने के लिए 1932 में महात्मा गांधी ने हरिजन सेवा संघ की भी स्थापना की थी। 1924 में गांधीजी ने वाईकाॅम सत्याग्रह भी किया था इस सत्याग्रह के पीछे उनका मकसद था कि दलितों को प्रताड़ित करने से बचाया जाए।
उपरोक्त पोस्ट को पढ़ने के बाद आप शायद कुछ अंदाजा लगा पाए होगें डाॅ अम्बेडकर की सोच और गांधी जी की सोच में। गांधी जी के शुरूआती नियम धर्म से प्रभावित हुआ करते थे और धर्म के खिलाफ वह मुखर आवाज में नहीं बोल सकते थे। गांधी जी बर्हिजातीय विवाह को न मानने वाले थे मगर इतेफाक की बात है कि उनके ही पुत्र मनीलाल को एक मुस्लिम लड़की फातिमा से प्यार हो गया मगर गांधी जी इन दोनों की शादी के खिलाफ थे इनकी शादी को होने नहीं दिया।
1927 को एक बार फिर से उनके दूसरे बेटे देवदास गांधी एक लक्ष्मी नाम की लड़की से शादी करना चाहते थे मगर गांधीजी इसके भी खिलाफ थे क्योंकि वो लड़की पिछड़ी जाति की थी परंतु समय के साथ गांधी जी धर्म के प्रति नजरिया बदलता गया 1932 में इन्होंने अपना नजरिया अंतरजातीय विवाह को लेकर बदल लिया उन्होंने मान लिया की हिन्दू धर्म में अंतरजातीय विवाह पर जो पाबंदियां है वो हिन्दू धर्म को और अधिक कमजोर कर रही है।
जनवरी 1946 में बात इस हद तक पहुंच गई गांधी जी ने कहा था की वो अपने आश्रम में तब तक शादी नहीं होने देगें तब तक जब तक लड़के या लड़की में से कोई एक हरिजन नही होगा उन्होंने यहां तक कह डाला की उनका बस चले तो वो सारी लड़कियों को कहते कि वो अपना पति एक हरिजन लड़के को ढूंढे।
दूसरी तरफ अक्टूबर 1935 खुले रूप से एक प्रेस वार्ता में कह दिया वो हिंदू धर्म को छोड़ना चाहते है शुरूआत में कहा जा रहा था कि वो सिख धर्म अपना सकता है मगर कुछ कारणों की वजह से वो सिख नहीं बन पाए और आगे चलकर अंतिम रूप से उन्होंने बौद्ध धर्म को अपना लिया।
1909 में जहां ब्रिटिश सरकार ने मुस्लिमों को अलग से वोट का अधिकार दिया था वहीं 1919 क्रिश्चियन, एग्लों-इंडियंस, यूरोपीयंस को और सिख को भी अलग से वोटिंग करने का अधिकार प्रदान कर दिया था ऐसा ही अधिकार डाॅ. अम्बेडकर दलितों के लिए चाहते थे मगर गांधी जी इसके एकदम खिलाफ थे इसी कारण दोनों के मध्य तल्खियां और अधिक बढ़ गई थी।
7 सितम्बर 1931 को गोलमेज सम्मेलन में गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के सामने अपनी मांगे रखी इन्होने कहा था कि अछूत भी हिंदू है उन्हें वोटिंग का अधिकार नहीं मिलना चाहिए और गांधी जी यह भी चाहते थे कि मुस्लिम, क्रिश्चयन, सिख जैसे धर्मों के लिए जो अलग से वोटिंग का अधिकार दिया गया है उन्हें हटा दिया जाए लेकिन दूसरी तरफ अम्बेडकर चाहते थे कि दलितों को भी अलग से वोटिंग का हक मिलना चाहिए। मगर इनके जवाब में ब्रिटिश सरकार ने बांटों और राज करो वाली नीति अपनाई और दलितों को भी एक अलग वर्ग में बदल दिया और दलितों को भी वोटिंग का अधिकार दे दिया। मगर गांधी जी को यह बात बिल्कुल भी पसंद नही आई गांधी जी का मानना था कि किसी को भी अलग के वोटिंग का दर्जा देने से देश संयुक्त रूप से नही रह पाएगा और वो अपनी जान भी देने को तैयार थे इस चीज को लेकर इसलिए गांधी जी बैठ गया एक उपवास पर एन टू डेथ।
डाॅ. अम्बेडकर पर इस बात को लेकर काफी दबाव बनाया जा रहा था कि एक तरफ वो अपनी मांग मनवाना चाहते थे दूसरी तरफ वो देख रहे थे कि गांधी जी को सही में कुछ हो जाता है तो इससे दलितों की छवि को काफी नुकसान भी पहुंच सकता है। इसकों लेकर डाॅ अम्बेडकर और महात्मा गांधी ने एक ऐतिहासिक समझौता किया जिसका नाम है पूना पैक्ट। आपने स्कूल की किताबों में तो पढ़ा ही होगा दोनों ने आपस में कुछ-कुछ बातें मानी और संयुक्त वोटिंग का फैसला लिया यानि एक क्षेत्र में कोई भी धर्म का उम्मीदवार खड़ा क्यो ना हो जाए मगर वोट डालने का अधिकार सबकों होगा ऐसा नहीं होगा कि सिर्फ एक जाति के ही वोट डाल पाएगें।
अम्बेडकर द्वारा अपनी जन्मभूमि पर एक आंदोलन चलाया गया यह आंदोलन 20 मार्च 1927 में चलाया गया इस आंदोलन का नाम था माहड़ सत्याग्रह इसमें सैकड़ों दलित शामिल हुए जिनको लेकर बाबा साहब गांव के तालाब मे गए और एक साथ तालाब का पानी पिया इसको लेकर उस समय अनेक अगड़ी जाति के लोगों ने विरोध किया और इन दलितों के साथ मारपीट की।
25 दिसंबर 1927 को डाॅ अम्बेडकर और इनके सैकड़ों प्रशंसकों ने एक मुहिम चलाई जिसमें मनुस्मृति को जलाया गया। मनुस्मृृृृृृृृृृृृति ही जिसमें जाति को लेकर अनेक नियम बनाए गए है कौन अगड़ी जाति का होगा और कौन पिछड़ी जाति का होगा इसके अलावा मनुस्मृति में ही जाति के आधार पर कामों को बांटा गया है। जिस दिन अम्बेडकर ने मनुस्मृति को जलाया गया उस दिन को मनुस्मृति दहन दिवस के रूप में मनाया गया था।
अम्बेडकर की एक ओर मुहिम थी जिसमें दलितों को मंदिर परिसर में घुसने नही दिया जाता था इसके खिलाफ भी बाबा साहब ने एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया था।
डाॅ अम्बेडकर की एक ओर उपलब्धि रही है उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ मिलकर हिंदू कोड बिल को पारित कराया और हिंदू औरतों के लिए काफी सराहनीय कदम है जो कि उनकी सुरक्षा में मदद करता है दुर्भाग्यवश यह उस समय यह अन्य धर्मों के लिए नहीं आ पाया।
आज के समय में डाॅ बाबा साहब अम्बेडकर के विचारों से हर कोई बहुत कुछ सीख सकता है अगर हम उन्हें सही मायनों में सम्मान देना चाहते है तो उनके बताए हुए नियमों को ईमानदारी से लागू करने पड़ेगें क्योंकि हम सब जानते है कि यह आज भी भारत में पूरी तरह छूआछूत व दलितों के साथ भेदभाव कम नहीं हुए है।