शैलेश लोढ़ा – हम हिंदुस्तानी पति-पत्नी

हम कुछ सोचें, कुछ प्रारंभ करें उससे पहले ही हमारे व्यक्तिगत पड़ोसी श्रीयुत बाबूलाल जी साधिकार घर में प्रविष्ट हुए और गंभीरता के साथ बोलें, ‘शैलेश भाई, आपकी इतनी जान-पहचान और लोकप्रियता कब काम आएगी। आप हमारा अमेरिका का वीजा लगवाइए (जैसे हमारी लोकप्रियता तभी सिद्ध होगी, जब हम उनका अमेरिकन वीजा लगवाएंगे)।’ मैं बोला, ‘बाबू भाई, पहली बात, जो बाइडेन मेरी भुआ का बेटा नहीं है, आतीं, तीसरा आपकों अमेरिका जाना ही क्यों है?’ वे बोले, ‘शैलेश भाई, मुझे अमेरिका जाकर वहां की सरकार को समझाना है कि जिन शोध कार्यों में वे लाखों डाॅलर खर्च करके परिणाम बताते है वो तो मैं मुफ्त में ही बता सकता हूं।’ मैं चैंका, क्योकि बाबूलालजी की इस ‘वैज्ञानिकीय प्रतिभा’ से मैं भी अब अब तक अपरिचित था और उन्होंने मोहल्ले से सीधे मैनहट्टन तक जो छलांग लगाई वह भी कमाल की थी। मैं बोला, ‘कुछ खुलकर बताइए।’ वे बोले, ‘क्या बताऊं शैलेश भाई? अमेरिका की इलिनाॅय यूनिवर्सिटी की एक ताजा स्टडी में शोधकर्ता डाॅ ब्रायन आगोलस्की ने बताया है कि कई वर्षों तक पति-पत्नी साथ रहें तो इतने समय एक साथ होने की वजह से उनकी धड़कने समान हो जाती हैं तथा एक-दूसरे की मौजूदगी से उनके अवचेतन मन भी साथ हो जाते हैं। अब साहब जिस नतीजे पर पहुंचे हैं, वे कभी लाखों डाॅलर खर्च करके ये डाॅ ब्रायन जिस नतीजे पर पहुंचे हैं, वे कभी हिंदुस्तान आकर हम शादीशुदा जोड़ों को देख लें। और मेरे घर ही जाएं। मेरी और मेरी पत्नी की धड़कनें तो छोड़ो, विचार और बातें भी बिल्कुल एक जैसी हैं। कभी मैं कहता हूं, ‘तुझमें अक्कल नहीं, दूसरे दिन वो कहती है, ‘तुममें अक्कल कब आएगी? बहस के दौरान उसके मुंह से निकलता ही है, ‘तुमसे शादी करके तो मैनें करम फोड़ लिए’, और मैं भी बोलता ही हूं, तू ही मिली थी मेरे गले पड़ने के लिए।’ मुझे मेरा ससुराल पसंद नहीं है तो उसे उसका। मेरी सास बिल्कुल नहीं जंचती और वो भी कहती है, ‘ऐसी सास भगवान किसी को न दे।’ बेटा गड़बड़ करे तो वह कहती है, ‘तुम पर गया है।’ बेटा मेरी बात न माने तो मैं कह देता हूं, ‘तुम्हारा ही बेटा है।’ जब पता होता है कि शक्कर खत्म हो चुकी है और महीने का आखिरी दिन है, तो अचानक कह देती है कि ‘मैं मोटी हो रही हूं, आज से शक्कर बंद’ और मै कहता हूं कि ‘डाॅक्टर ने मुझे चीनी के लिए मना किया है’ ताकि बच्चे मेरी चाय पी सकें। वो गेहूं के डिब्बे में छुपा के रखे पैसों से मेरे लिए चुपपाप कमीज ले आती है तो कभी मैं किश्तों में ही सही, साड़ी खरीद लाता हूं और झूठ कह देता हूं कि सस्ती मिल रही थीं मैं बीमार हो जाऊं तो वो सारी रात जागकर देखती हैं कि जगा हुआ तो नहीं हूं और जब वो थक जाती हैं तो मैं उसके सिर में बाम लगा देता हूं। ये डाॅ ब्रायन क्या जाने शैलेश भाई कि हमारे देश में धड़कने और मन एक होने के लिए 30-40 वर्षो के साथ की जरूरत नहीं होती। मंडप में गठबंधन होते ही हमारी धड़कने व म नही क्या, हमारी खुशियां, गम, चिंताएं, विषाद, अभाव, प्रसन्नताएं, उत्सव, उमंग, उल्लास, यात्रा, थकान, तनख्वाह और हमारी जरूरतें, सब एक हो जाते हैं। लड़ते हैं, बहस करते हैं, रोते, रूठते हैं, फिर एक दूसरे को मनाते हैं। और ये जानने के लिए वो लाखों डाॅलर में रिसर्च करते हैं। अरे… वो क्या जानें, ‘रिश्ता क्या होता है…’ और हम सजल नेत्रों से मुस्करा उठे।

Credit : शैलेश लोढ़ा

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