शैलेश लोढ़ा- तू मुझे जानता नहीं है

मेरी सुबह तो आप लोग जानते ही हैं कि मेरी सुबह में सुबह होना तब ही संभव है, जब मेरे व्यक्तिगत पड़ोसी बाबूलाल जी मेरे घर पधार जाएं और चाय के आचमन के साथ मेरी सोच को किसी नए विषय पर जागृत कर लें तो हम भी सूर्यदेवता से कह ही रहे थे कि प्रभु आप के टाइम टेबल के हिसाब से तो दुनिया में सुबह हो गई, पर मेरा पर्सनल टाइम टेबल अभी प्रारंभ नहीं हुआ है, हम कह ही रहे थे कि भिन्नाए हुए, थोड़े से खीजे और उखड़े हुए बाबूलाल जी घर में घुसे और बिना किसी सलाम-दुआ के बैठ गए और चाय के कप को भी हाथ नहीं लगाया। यह हमारे लिए पूर्णतया नई स्थिति थी, इसलिए चुपचाप बैठे रहे कि श्रीयुत बाबूलाल जी के मुखारविंद से ही कुछ सुनें। हमें ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी, और बाबूलाल जी रूष्ट स्वर में बोल उठे, शैलेश भाई ये मेरे पड़ोस में रहने वाला मुरारी रोज मेरे घर के आगे जानबूझ कर कचरा डाल देता है। आज जब मैंने रंगे हाथों उसे कचरा डालते हुए पकड़ लिया और टोका कि भाई मुरारी, यह नहीं चलेगा तो उल्टे बदतमीजी पर उतर आया और बहसबाजी करने लगा कि ‘बाबूलाल तू मुझे जानता नहीं है’ तो हमें भी तैष आ गया और कह दिया कि ‘मुरारी तू मुझे जानता नहीं है’। मैं बोला- ओ हो हो बाबूभाई, फिर क्या हुआ? कहीं बात हाथापाई तक तो नहीं पहुंच गई? वे बोले-नहीं शैलेश भाई, यह संभव ही नहीं है, अगर मुरारी ऐसा करता तो फिर वह मुझे जानता नहीं है कि मैं क्या करता, और मैं सोचने लगा कि कुल मिलाकर दोनों के बीच बहस सिर्फ एक प्रश्न की पुनरावृति पर समाप्त हो गई ‘तू मुझे जानता नहीं है’। मुझे बड़ा दिलचस्प लगा कि हमारे देश में गली में, मुहल्ले में, सड़कों पर, गाड़ियों के आपस में भिड़ने पर चालक के बीच, रेल में सीट को लेकर बहस के दौरान, दफ्तर में सहकर्मी के तर्क के दौरान, यानी कुल मिलाकर हर मामूली झगड़े से लेकर गंभीर झगड़े तक हम हिंदुस्तानी लोग समाने वाले को चेतावनी जरूर देते हैं कि भाई ‘तू मुझे जानता नहीं है’ , यानी जान ले कि मैं तुझ पर भारी पड़ सकता हूं, फिर मुझे मत कहना, हालांकि यह कहने वाला तो खुद को जानता ही है औश्र कई बार मन मे सोचता भी होगा कि मैं इसका क्या बिगाड़ लूंगा और असल में सामने वाला अगर यह जान गया कि मैं कुछ नही कर पाऊंगा तो कहीं ये ही मेरा हुलिया न बिगाड़ दे, लेकिन यह वाक्य ‘तू मुझे जानता नहीं है’ रामबाण इलाज की तरह काम करने वाला है और दो चिल्लाते हुए लोग, आस्तीन ऊपर करते हुए, एक दूसरे को खुद को जानने की चुनौती देकर ‘भावी मारपीट’ को सिर्फ बातचीत तक महदूद रख लेते हैं, भाई वाह! यह सुविधा और कोशिश भी कमाल है, मैं सोच से बाहर आया और बाबूलाल जी को पूछा- यदि मुरारी फिर से कचरा फेंकेगा तो आप क्या करेंगे बाबूभाई? वे बोले- आप देखिए मैं क्या कर सकता हूं, ‘आप मुझे जानते नहीं है’ और मैं मुस्करा दिया।

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